विचार
21 वीं शताब्दी के दूसरे दशक में जहाँ एक ओर कोरोना कोविड-19 महामारी ने संपूर्ण मानवता को झकझोर दिया है,वहीं दक्षिण पश्चिम एशिया में स्थित इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हो रहे युद्ध ने वैश्विक समुदाय का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है।लगभग 85 लाख आबादी वाले इजरायल और 46.9 लाख आबादी वाले फिलिस्तीन की ऐतिहासिक यात्रा ही कुछ अलग है।20,700 वर्ग कि०मी०क्षेत्र में बसे इजरायल और 6,020वर्ग कि०मी०क्षेत्र में बसे फिलिस्तीन को आज जानना काफी प्रासंगिक है। इजरायल यहूदी धर्मावलंबियों का स्थल है तो फिलिस्तीन सूफी इस्लामियों(मतावलंबियों)का स्थल।विदित हो कि इजरायल 14 मई,1948 को एक स्वतंत्र देश बना और “जेरुसलम”को अपनी राजधानी बनाया। जबकि 15 नवंबर,1988 को फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश का दर्जा मिला और उसने भी “जेरुसलम” को ही अपनी राजधानी घोषित किया, परंतु इसकी प्रशासनिक राजधानी “रामल्लाह” है।
हजारों वर्षों से चली आ रही इस वर्चस्व की लड़ाई में 1993में हुई “औस्लो एकोर्ड समझौते “से विश्व को लगा कि अब इस क्षेत्र में शांति की धारा प्रवाहित होगी।इसके लिए इजरायल के यित्जाक रॉबिन और फिलिस्तीन के यासिर अराफात को “शांति का नोबेल पुरस्कार “भी दिया गया। परंतु 2000ई०आते- आते अमन चैन का सपना ध्वस्त हो गया।
इतिहास साक्षी है कि 77 ईसा पूर्व से प्रारंभ हुई यह कहानी वर्ष 2021 तक जीवंत है।1890 में फ्रांस-रुस युद्ध,1897 में स्विट्जरलैंड में “वर्ल्ड जियोनिस्ट कांग्रेस ” की स्थापना,1914 में प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार का वादा,1917 में “बालफोर समझौता”,1920-1945 तक हिटलर द्वारा यहूदियों का नरसंहार,29 नवंबर,1947 में संयुक्त राष्ट्र का द्विराष्ट्र सिद्धांत,1948 में इजरायल और जार्डन के बीच “ग्रीन लाईन” सीमा समझौता,1948-49 में अरब-इजरायल युद्ध,1967 का “सिक्स डे वार”,1993 में औस्लो- एकोर्ड समझौता एवं 2000 ई०में समझौते का टूटना,2007में फिलिस्तीन में “हमास”का पदार्पण और गाजा पट्टी पर नियंत्रण,2014 में इजरायल और हमास के बीच 50 दिनों का युद्ध और इस समय 2021 में पुन: युद्धों की पुनरावृत्ति।
इसे इस्लाम बनाम यहूदी कहा जाय या येरुशलम व गाजा पट्टी पर वर्चस्व की लड़ाई ?
“जिओनिज्म आंदोलन” के द्वारा यूरोपीय यहूदी अपने समुदाय में राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करते हुए यहूदियों के लिए एक सुरक्षित देश की स्थापना करना चाहते थे,जो वर्तमान में इजरायल के रूप में सामने है।दूसरी ओर फिलिस्तीनियों का एक दल “फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाईजेशन” जो इजरायल से बातचीत कर समस्याओं को दूर करने में पहल करता रहा। परंतु फिलिस्तीन के गाजा पट्टी में 1987 में पहली बार सामने आने वाला संगठन “हमास” का उग्र राष्ट्रवाद 2007 में सामने आया ।यह संगठन इजरायल पर बार – बार हमला कर युद्ध के लिए प्रेरित करता है।विदित हो कि 2007 में हमास के द्वारा इजरायल पर हमला करने के बाद ही इजरायल ने “गाजापट्टी”को ब्लाॅकेड कर दिया है,जिसके कारण गाजापट्टी की स्थिति काफी दयनीय हो गई है।
दरअसल फिलिस्तीनियों की मांग है कि गाजापट्टी और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना हो, अवैध विस्तार पर रोक लगाते हुए इजरायल 1967 ई०से पूर्व की अंतरराष्ट्रीय सीमा तक सीमित रहे।फिलिस्तीनी शरणार्थी अपने घर लौटें तथा “पूर्वी येरुशलम” को फिलिस्तीन की राजधानी बनाया जाय। जबकि इजरायल येरुशलम को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है तथा एक यहूदी राष्ट्र के रूप में इजरायल को संपूर्ण विश्व की मान्यता प्राप्त करना चाहता है। जबकि वर्तमान में वैश्विक समुदाय तीन गुटों में विभक्त है।एक घूंट जो इजरायल का समर्थन कर रहा है, जैसे-अमेरिका,फ्रांस और ब्रिटेन। दूसरा गूट जो फिलिस्तीन का समर्थन कर रहा है, जैसे-तुर्की सहित 57 इस्लामिक देशों का संगठन “इस्लामिक सहयोग संगठन”। तृतीय दोनों देशों के बीच हो रहे युद्धों पर सिर्फ पैनी नजर बनाए हुए हैं। संयोग है कि अमेरिका के दवाब में आ कर इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 20 मई,2021को युद्ध के 11वें दिन एकतरफा संघर्ष विराम को मंजूरी प्रदान कर दी है, वरना तृतीय विश्व युद्ध की अनहोनी होने की प्रबल संभावना लग रही थी।
लेखक: डॉ०एस०के०झा
समाजशास्त्री
उपर दिये गये वक्तव्य लेखक के अपने हैं