खूंटीः खूंटी जिले के तिलमा में एक बार फिर पुलिस प्रशासन और अनुसूचित जनजाति समाज आमने सामने भिड़ गए हैं। मामला तिलमा क्षेत्र में मारंगहादा थाना के लिए चिन्हित जमीन की घेराबंदी का है जिसमें सरना पूजा स्थल घेराबंदी के बाहर है लेकिन बलि स्थल थाना परिसर के लिए चिन्हित घेराबंदी के भीतर है। अर्थात मामला पूजा स्थल का नहीं बलि स्थल का है जहाँ अनुसूचित जनजाति पूर्वजों के काल से ही मुर्गा बकरी का बलि सिंगबोंगा को अर्पित करता आया है। बता दें कि अनुसूचित इलाके में गुजर बसर करने वाले सरना आदिवासी अर्थात जनजाति समाज अपने धार्मिक आस्था के लिए प्रकृति पर निर्भर रहता आया है। इनका कोई मंदिर, मस्जिद या गिरजाघर रूपी आकृति नहीं होता लेकिन लंबे समय से एक निश्चित पवित्र भूमि पर पूजा स्थल होता है। जनजातीय समाज मे विशेष धार्मिक अवसरों पर बलि चढ़ाने की परंपरा भी है। सरना समाज पूजा पाठ के क्रम में जब पशु पक्षियों का बलि चढ़ाते हैं तो बलि स्थल भी परंपरा के अनुसार पूर्व निर्धारित स्थल पर होते हैं। कालांतर से ही बलि पूजन एक निश्चित भूमि पर की जाती है। ऐसी मान्यता है कि पूजा स्थल और बलि स्थल पर कोई भी व्यक्ति गैर -धार्मिक क्रियाकलाप करता है तो उसपर कोई न कोई विपत्ति अवश्य आती है।
खूंटी जिले के तिलमा में थाना निर्माण के लिए परंपरागत बलि अनुष्ठान को लेकर पुलिस प्रशासन से ग्रामीण भिड़ गए हैं। ग्रामीणों ने 5वीं अनुसूची का हवाला देते हुए कहा है कि राज्यपाल को 5 वीं अनुसूची के तहत अनुसूचित जनजातीय समाज की सुरक्षा करने का दायित्व है। जनजातीय समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों में गैर जनजातीय समाज का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुण्डा पड़हा समाज के कई सदस्यों ने कहा कि तिलमा में यदि बलि अनुष्ठान वाले स्थल को थाना क्षेत्र से बाहर नहीं किया जाएगा तब तक थाना का विरोध जारी रहेगा। स्थानीय ग्रामीणों ने यह भी कहा कि थाना अन्यत्र कहीं भी बन सकता है लेकिन अनुसूचित जनजाति समुदाय का पूजा स्थल और बलि अनुष्ठान स्थल परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
यह जमीन स्थानीय लोगों के अनुसार पूर्वजों के काल से चली आ रही पूजा स्थल और बलि स्थल के रूप में चिन्हित पवित्र भूमि है।आदिवासी मुण्डा जनजातीय समाज जगह बदल बदल कर पूजा नहीं कर सकते। ऐसा करने से ( सिंगबोंगा) भगवान नाराज होंगे और गांव समाज मे तरह तरह की बीमारियां फैलेंगी, अतिवृष्टि या अनावृष्टि भी होगी।
ग्रामीणों ने कहा कि शुरुवात में तिलमा के पंचायत भवन में 3 महीने के लिए पुलिस कैम्प बनाने की इजाजत मांगी गई थी लेकिन तीन वर्ष गुजरने के बाद भी स्थानीय ग्रामीण खामोश रहे। लेकिन जब स्थायी थाना निर्माण के लिए धार्मिक आस्था वाले बलि स्थल की घेराबंदी कर दी गयी तब यहां से ग्रामीण और पुलिस के बीच दूरी बढ़ती गयी और अब ग्रामीण पुलिस आमने सामने आ गए हैं।
पुलिस प्रशासन जल्द इस मसले का हल नहीं निकालती है तो एक बार फिर खूंटी जिले में ग्रामीण आदिवासी समाज और पुलिस प्रशासन के विरूद्ध अपनी रणनीति बनाकर अपने समुदाय की घेराबंदी करेगा जो आने वाले समय मे पत्थलगड़ी से ज्यादा विस्फोटक रूप ले सकता है।