गोड्डा से अभय पलिवार की रिपोर्ट
गोड्डा: स्वयं को कवि नहीं कविता का कार्यकर्ता मनाने वाले, वर्ष 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा पहल सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, शमशेर सम्मान सहित अन्य महत्वपूर्ण सम्मान से नवाजे गए गोड्डा के पथरगामा में जन्म लेकर बनारस में सतत साहित्य-साधनालीन निराला, मुक्तिबोध और नागार्जुन की परम्परा के कवि ज्ञानेन्द्रपति को इस वर्ष का प्रसिद्ध नागार्जुन सम्मान दिए जाने की घोषणा पर जिला के तमाम साहित्यकारों एवं साहित्य सेवियों के बीच हर्ष एवं गौरव का माहौल है।
युवा साहित्यसेवी सुरजीत झा ने बताया कि अपनी रचनाओं मिट गए मैदानों वाले गांव, एक आदिवासी गांव से गुजरती सड़क, झारखण्ड के पहाड़ों का अरण्य रोदन, जसीडीह स्टेशन के पास, सावन में देवघर आदि अनेक कविताओं में निरंतर अपने प्रदेश, प्रदेश के भोले-भाले आदिवासी समाज और उनकी परम्परा, पहाड़, जंगल, नदियां, खेल के मैदान आदि की चिंता करने वाले और ललमटिया खदान हादसे पर झकझोर देनेवाली रचना ” ललमटिया में लहू के दाग नहीं दिखते” से खनिकों की व्यथा को शब्द प्रदान करनेवाले ज्ञानेन्द्रपति उर्फ मुन्ना भैया की इस ऐतिहासिक हासिल पर साहित्य-सेवा से जुड़े शिवकुमार भगत, विनय सौरभ, सुशील साहिल, सरोज दुबे, सर्वजीत झा, निरभ किशोर, प्रवीण तिवारी, इरा ठाकुर, मुकेश कुमार, नूतन झा, विद्यापति झा, ओमप्रकाश मंडल, मनीष सिंह, शैलेन्द्र प्रसाद, फूल कुमारी, ज्योतिप्रभा आदि ने हर्ष और गर्व व्यक्त करते हुए गोड्डा के साहित्यजगत को बधाई दी है।