रामगोपाल जेना
चक्रधरपुर: झारखंड में जनजाति सलाहकार परिषद की गठन पर भाजपा का आदिवासी विरोधी चेहरा सामने आ गया।भाजपा नहीं चाहती कि राज्यपाल द्वारा संदर्भित बिषयों पर आदिवासियों का कल्याण और उन्नति पर गंभीर चर्चा हो और राज्यपाल को सुझाव दिया जा सके।यही वजह है भाजपा के विधायकों द्वारा जनजाति सलाहकार परिषद की बैठक का बहिष्कार किया गया।यह बातें झारखंड आंदोलनकारी पूर्व विधायक श्री बहादुर उराव ने कहा है।
श्री उराव ने कहा कि झारखंड पांचवी अनुसूची राज्य है।और पाँचवीं अनुसूची राज्य व क्षेत्र में सामान्य कानून लागू नहीं होता।बल्कि आदिवासियों की कल्याण और उन्नति के लिए विशेष कानून लागू होती है।उदाहरणस्वरूप पेशा कानून के तहत प.सिंहभूम ज़िला के सभी ग्राम पंचायत,पंचायत समिति,ज़िला परिषद का मुखिया,प्रमुख,ज़िला परिषद अध्यक्ष आदिवासियों के लिए आरक्षित है।क्योंकि ज़िला अनुसूचित ज़िला है।अनुसूचित राज्य या क्षेत्र में राज्यपाल को प्रशासन और नियंत्रण का शक्ति प्राप्त है।जिसके आधार पर अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए राज्यपाल प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने का प्रावधान है।लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद राज्यपाल को संविधान के दायरे में रहकर स्वविवेक से अधिकार का उपयोग करना भी मुश्किल हो गया है।वास्तव में आदिवासियों के हितों की रक्षा करने के लिए जनजाति सलाहकार परिषद का गठन करना है।कोल्हान में लागू विल्किंसन रेगुलेशन की तरह झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में पहले से प्रचलित स्वशासन प्रणाली को विनियमित करने का अधिकार राज्यपाल को है।भाजपा के नेतागणों को उन अधिकारों को विनियमित करने के लिए राज्यपाल से माँग करने की जगह जनजाति सलाहकार परिषद की बैठक का बहिष्कार करते है।जिससे सिद्ध होता है कि भाजपा आदिवासियों के कल्याण और उन्नति के विरोधी है।