बोकारो: आज बोकारो स्टील सिटी महाविद्यालय बोकारो मनोविज्ञान विभाग मे समाजीकरण की प्रक्रिया समग्र व्यक्तित्व निर्माण मे सहायक विषय पर की गई , जिसमें विभागाध्यक्ष डॉ प्रभाकर कुमार ने बतलाया कि समाजीकरण के निर्माण में सभी निर्धारकों जिनमें माता पिता के व्यवहार , माता पिता के बीच आपसी संबंध , घर के वातावरण , परिवार के अन्य लोग , आर्थिक स्थिति , सामाजिक वर्ग भेद , पड़ोस , खेल व खेल के साथी , स्कूल संदर्भ , संगी साथी , भाषा योग्यता , व्यावसायिक प्रसंग , संस्कृति आदि कारकों की भूमिका प्रधान होती है । बचपन में सीखे गये प्रतिमानों को व्यक्ति ताउम्र संचालन करते हैं । मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने यह कहा था कि 0 से 6 वर्ष की उम्र विशेष मे बच्चे जो कुछ सीखते हैं वैसी आदतों , विचारों , भावों व प्रतिमानों का वह जीवन के अंत अंत अनुकरण करते हैं । वैसी आदतें व्यक्ति मे दृढ़ हो जाती हैं । अच्छा व्यक्ति व बुरा व्यक्ति निर्मित होने में समाजीकरण के प्रक्रिया के सभी निर्धारकों की भूमिका प्रधान होती है ।घर में माता पिता व परिवार पर ये जवाबदेही होती है कि किस तरह के व्यक्तित्व निर्माण की प्रारूप बनाये ।
डॉ प्रभाकर कुमार ने समाजीकरण की प्रक्रिया को चार वर्गों में वर्गीकृत कर पहला बचपन , दूसरा किशोरावस्था , तीसरा वयस्कावस्था और चौथा वृद्धावस्था बतलाया । ये चार अवस्थाओं में व्यक्ति का समग्र विकास की प्रक्रिया चलती रहती है । समाजोपयोगी व समग्र व्यक्तित्व निर्माण की नींव बचपन अवस्था से ही शुरू ।
उर्दू विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ नाज शाहिना खान ने बतलाया कि अच्छा इंसान बनना जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं । अच्छा परवरिश दिए जाने से ही बच्चों में संस्कारों का उदय होता है । घर के माहौल , बच्चों के साथ माता पिता के सकारात्मक माहौल उन्हें सृजनात्मक परिस्थितियों की ओर ले जाते हैं ।
इतिहास विभाग की डॉ वीणा शर्मा ने यह बतलाया कि जैसा अन्न वैसा मन , इसी प्रकार जैसी घर के अनुकूल वातावरण , माता पिता का बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार वैसे बच्चों का विकास । समाजीकरण की महंती भूमिका , घर की पृष्ठभूमि बेहद महत्वपूर्ण । सभ्य व संस्कारी व्यक्ति ही देश राष्ट्र निर्माण में अपनी अद्वितीय भूमिका के निर्वहन कर पाते हैं ।
सेमेस्टर 3 की विद्यार्थी अनीशा यादव ने कहा कि माता पिता के सिखलाये नियमों व अनुशासन का हम अनुकरण करते आये हैं । संयुक्त परिवार प्रणाली में हम पले बढ़े हैं इसलिये परिवार को जीवन में महत्वपूर्ण समझते हैं और घर से मिली सभी आदतें हमारे जीवन में परिलक्षित होते हैं । अनुशासन में रहना व जीवन में शिष्टचार के साथ आगे बढ़ने की सीख हमने अपने माता पिता से सीखा है ।
संगोष्ठी में , यह उभरकर सामने आया कि सभ्य शालीन संस्कारी चरित्र निर्माण व संतुलित व्यक्तित्व निर्माण , जीवनोपयोगी शिक्षा आदि में घर के मिले प्रतिमान समग्र व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं । बचपन की अच्छी सीखी गयी आदतें पूरे जीवनकाल तक चलती रहती है । बच्चे गीली मिट्टी समान होते हैं , जिस आकृति मे ढाल दी जाये , ताउम्र अच्छी आदतों , अच्छे व्यक्ति के रूप में समाज में प्रतिष्ठापित हो जाते हैं । वहीं गलत व्यवहार , गलत प्रतिमान वाले व्यक्ति निसंदेह बचपन में गलत मॉड्यूल की ओर विकास वाले होते हैं , अतः परवरिश , संस्कार , संस्कृति समग्र , र्वांगीण चतुर्दिक विकास में सहायक । समाजीकरण की प्रक्रिया का शुद्ध होना समाज को गति प्रदान करते हैं ।
आज के संगोष्ठी में शिक्षकों समेत मनोविज्ञान विषय के Inter 11 , Inter 12 , डिग्री के कई सेमेस्टर के विधार्थियों की उपस्थिति रही । सेमेस्टर 3 के विद्यार्थी अनीशा यादव ने अपने विचार रखे । मनोवैज्ञानिक जगत में सेमिनार / संगोष्ठी का होना उपलब्धियों मे से एक है ।