खूंटी: समाज के वैसे बच्चे जिनके पास मोबाइल नहीं, ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था नहीं वैसे अंतिम पंक्ति में खड़े जनजातीय बच्चों तक पहुंच बनाना शायद किसी के लिए भी आसान नहीं था। यहां तक कि स्कूल के शिक्षक भी बगैर एंड्रॉइड मोबाइल के बच्चों को नहीं पढ़ा सकते।
एक तरफ कोरोना का संक्रमण, दूरी तरफ केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगाया गया लॉकडाउन, स्कूल कॉलेज बन्द, जिनको भी पढ़ना हो तो सिर्फ ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से ही अपनी पढ़ाई जारी रखी जा सकती है। ऐसे विकट परिस्थिति में आकांक्षी जिला खूंटी के कच्चाबारी पंचायत की आदिवासी बहुल गांव चंदापारा की छठवीं क्लास की छात्रा दीपिका मिंज ने इलाके में अपनी सोच को धरातल पर उतारकर एक नई मिसाल कायम की है।
महज 11-12 साल की उम्र में चंदापारा गांव की बेटी दीपिका मिंज ने एक दिन लॉक डाउन की अवधि में सोचा कि स्कूल कॉलेज बन्द होने से मेरी पढ़ाई अधूरी रह गई और अब स्कूल के विषय भी दिमाग से आउट होने लगे हैं। तब दीपिका ने अपनी पढ़ाई को जारी रखने का सोचा लेकिन अपनी पढ़ाई के साथ साथ दीपिका ने पूरे गांव के बच्चों के बारे भी सोचना शुरू किया कि हमारे गांव के बच्चे बिना एंड्राइड मोबाइल के कैसे ऑनलाइन शिक्षा ले पाएंगे। तब दीपिका ने दो-चार बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना शुरू किया। धीरे धीरे गांव के अन्य बच्चों के माता पिता दीपिका से संपर्क कर अपने बच्चों को भी दीपिका के पास भेजने लगे। बाद में पूरे गांव में घर घर घूमकर दीपिका ने सर्वे किया कि किनके घर मे छोटे बच्चे हैं और सबका नाम लिखकर एक सूची तैयार की। सूची तैयार करने की सूचना गांव के ग्रामसभा को भी हुई। ग्रामसभा ने बैठक में तय किया कि दीपिका अकेले कैसे सौ से ज्यादा बच्चों को संभाल पाएगी। तब गांव की लिली स्नेहा लकड़ा, तनु और मधु मिंज दीपिका के सहयोगी के रूप में आगे आयीं। धीरे धीरे बच्चों के साथ साथ तीसरी, चौथी, पांचवी, छठवीं, सातवीं और आठवीं के विद्यार्थी भी गांव की पाठशाला में आने लगे और पूरा गांव अब दीपिका के नक्शे कदम शिक्षा की रोशनी फैलाने में जुटा है।
गांव की वार्ड सदस्य शीला लकड़ा बताती है कि दीपिका के मेहनत और सोच को लेकर ग्रामसभा ने बच्चों की पाठशाला को बंद पड़े स्कूल में जारी रखने का सुझाव दिया और देखते ही देखते पांच- छह बच्चों की पढ़ाई से शुरू करते आज 100 से ज्यादा बच्चे दीपिका की पाठशाला में शामिल होने लगे हैं।
दूसरी तरफ गांव में बच्चों के बीच काम कर रही सामाजिक संस्था प्रतिज्ञा के सचिव अजय कुमार और सहयोगी ने भी दीपिका की मदद करने की सोची और बड़े बच्चों को पढ़ाई के लिए गांव में बने लाइब्रेरी में लाइट की व्यवस्था की। अब गांव के बच्चे अपनी मर्जी से अपना वक्त निकालकर गांव की लाइब्रेरी में चुपचाप पहुंचकर पढ़ने लगते हैं।
प्रतिज्ञा संस्था के सचिव अजय कुमार और मीरा मैडम ने बताया कि जनजातीय इलाके की पांच छह क्लास की बच्ची यदि पूरे गांव को शिक्षित करने की सोचती है तो निश्चित ही गांव की ऐसी बेटी सलाम करने योग्य है। प्रतिज्ञा की सहयोगी ने बताया कि विपरीत परिथिति में पढ़ने के साथ साथ बच्चों को पढ़ाने का जुनून दीपिका मिंज को समाज की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा करता है। अंतिम पंक्ति में खड़े बच्चों को ऑफ लाइन मोड में बगैर कोई फीस लिए निशुल्क पढ़ाना न केवल जनजातीय समाज बल्कि गैर जनजातीय समाज के लिए भी एक सकारात्मक संदेश दे जाता है।
– खूंटी जैसे पिछड़े और नक्सलप्रभावित आकांक्षी जिला में दीपिका मिंज और उनके सहयोगियों ने नई इबारत गढ़ने का काम किया है।