खूंटीः समाज के वैसे बच्चे जिनके पास मोबाइल नहीं, ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था नहीं वैसे अंतिम पंक्ति में खड़े जनजातीय बच्चों तक पहुंच बनाना शायद किसी के लिए भी आसान नहीं था। यहां तक कि स्कूल के शिक्षक भी बगैर एंड्रॉइड मोबाइल के बच्चों को नहीं पढ़ा सकते।
ऐसे में छात्रा दीपिका, तनु, लिली और मधु की मेहनत रंग लाई और 100 से ज्यादा बच्चे अब गांव के चबूतरे पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करने लगे हैं।
यह खबर हमारे चैनल में प्रमुखता से चली थी। खबर चलने के बाद पठन पाठन सामग्री विहीन जनजातीय बच्चों के लिए मदद को कई हाथ आगे बढ़े। इसी क्रम में झारखण्ड के सीएसओ फोरम से जुड़े सामाजिक कार्यकर्त्ता बलरामजी और प्रेमशंकर ने संयुक्त रूप से बच्चों के बीच पहुंचकर उनसे बातचीत की। बच्चों से सवाल जवाब पूछकर बच्चों के शैक्षणिक क्षमता को बेहतर बनाने की बात कही। बच्चों के लिए अन्नपूर्णा प्रेस के संचालक गोपाल मोदी समेत अन्य लोगो ने कॉपी, पेन, पेंसिल, समेत विभिन्न पठन पाठन सामग्रियां उपलब्ध कराईं। झारखण्ड के सीएसओ फोरम की ओर से सामाजिक कार्यकर्त्ता बलरामजी और प्रेमशंकर के हाथों पठन पाठन सामग्री पाकर बच्चे बेहद उत्साहित नजर आए।
बच्चों को प्रतिदिन स्कूली समयानुसार दीपिका मिंज, तनु, लिली स्नेहा लकड़ा, मधु मिंज और उनकी सहेलियां क्लास वन से लेकर 8वीं नौंवी तक की पढ़ाई कराती हैं। गांव के बच्चे भी सुबह 7 बजे से ही रूटीन मुताबिक अपने गांव के बन्द पड़े स्कूल में जुटते हैं और हिंदी, अंग्रेजी, गणित और सामान्य ज्ञान की पढ़ाई करते हैं।
बता दें कि कोरोना संक्रमण काल मे जब प्राइवेट स्कूलों के बच्चे अपने अपने घरों से ऑनलाइन क्लास में डटे हैं तब चंदापारा के बच्चे दिनभर खेल कूद में समय गवांते थे और पढ़ाई से दूर होते जा रहे थे। ऐसे कठिन समय मे दीपिका की पहल रंग लाई और आज एक सौ से ज्यादा बच्चे ऑफलाइन स्कूली शिक्षा से जुड़े हैं।