जेनेरिक दवाइयों की स्तिथि देश मे बहुत अच्छी नही है। इसका जितना प्रसार प्रचार होना चाहिए था वो नही हो पाया। मोदी सरकार आने की बजह से थोड़ी गति जरूर आई लेकिन वो गति अब भी नही आ सकी की देश के ज्यादा ज्यादा लोग इस दवाई का उपयोग कर पाए।
क्या है जेनेरिक दवाइयां
जिस केमिकल फॉर्मूले पर ब्रांडेड दवाइयां बनाई जाती है उसी फॉर्मूले पर जेनेरिक दवाइयां भी बनाई जाती है। फर्क सिर्फ इतना भर है कि ब्रांडेड दवाइयां बनाने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियां जब किसी दवाई की उत्पादन करती है तो रिसर्च, ट्रायल, डेवलपमेंट सहित लीगल प्रोसेस आदि पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है। एकबार दवा एप्रूव्ड होने पर उस कम्पनी को 20 से 25 वर्षों के लिए उन दवा का पेटेंट मिल जाता है। जिससे दूसरी दवा कम्पनियां उस दवा का उत्पादन नही कर सकती। दवा बनाने पर हुए खर्च और पेटेंट मिल जाने की बजह से कम्पनियां अपनी ब्रांडेड दवा को मनचाहे कीमत पर बेचती है।
लेकिन 20 -25 वर्ष के बाद कम्पनी का जब पेटेंट खत्म हो जाता है तो दूसरी कम्पनिया उस दवाई का उत्पादन आरम्भ कर देती है। चुकि इन कम्पनियों को पूरा का पूरा फार्मूला तैयार मिलता हैं एक साथ कई दवा कम्पनिया द्वारा दवाई उत्पादन शुरू कर देने से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है जिस बजह से ये दवाएं सस्ती होती है। यही दवाएं जेनेरिक दवाएं कहलाती है।
कितनी प्रभावी है ये दवाइयां
माना जाता है ये दवाइया उतनी ही प्रभावकारी और सुरक्षित होती जितनी कि ब्रांडेड दवाइयां। इन दवाओं पर देशभर में कई शोध भी हो चुके है और यह साबित हो चुका है कि जेनेरिक दवाइयां गुणवत्ता में ब्रांडेड दवाओं से कम नही है। जेनेरिक दवाओं को भी क्वालिटी कंट्रोल के कड़े नियमो से गुजरना पड़ता है।
कहाँ उपलब्ध है दवाइया।
आज मेडिकल स्टोर के अलावा भारत सरकार के जन औशधि केंद्र पर यह दवाएं उपलब्ध है। ये दवाएं केमिकल नामो से बाजार में उपलब्ध है।आजकल ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयां भी बाजार में आ चुकी है।
तश्वीर का दूसरा रूख
यह जानना जरूरी है कि आखिर क्या कारण है कि चिकित्सक अपने मरीज़ों को जेनेरिक दवाएं नही लिखते क्या दवाइया उतनी प्रभावी नही होती जितनी सरकार दावा करती है। वरीय चिकित्सकों की अगर माने तो डॉक्टरों को अपने मरीज़ को जेनेरिक दवाएं प्रेसकाबिड करनी चाहिए जब चिकित्सक इस भरोसा करेंगे तभी आम लोगो का विस्वास भी बढ़ेगा वही सरकार को भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए कम से कम सरकारी चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाइयां मरीज़ों को लिखने वास्ते कदम बढ़ाना चाहिये। वही इसकी प्रचलन में कम होने की एक बड़ी समस्या यह भी है ये दवाई विभिन्न केमिकल फार्मूले के नाम से बाज़ार बिकती है मरीज़ों में केमिकल फार्मूले को लेकर जानकारी ना होना भी प्रमुख है। सरकार को इस दिशा में भी कदम बढ़ाते हुए इसकी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए आगे आना होगा अगर ऐसा हो सका तो आम लोगो पर दवाइयों पर होने वाले भारी भरकम खर्च से भी राहत मिलेगी।