खूंटी: न कोई बयान, न कोई दर्द, न कोई शिकवा…. बस एक फोटो, एक वीडियो ही जवानों के जद्दोजहद को दिखाने के लिए काफी है। सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में जलसंकट की खबरें आम बन गयी हैं। अक्सर डाड़ी, चूंआ से ग्रामीण बुझा रहे अपनी प्यास -वाली खबरें प्रमुखता से मीडिया में चलती रही हैं। लेकिन हम आपको खूंटी के उन नक्सलप्रभावित इलाकों में हमारी सुरक्षा में लगे जवानों के पानी के लिए पानी पानी होते नजर आने वाली तस्वीर दिखा रहे हैं।
खूंटी जिले के कई सुदूरवर्ती जंगल पहाड़ों वाले इलाकों में पारा मिलिट्री फ़ोर्स की तैनाती की गई है लेकिन जब उन्हें मूलभूत सुविधाएं मयस्सर न हों तब आप समझ सकते हैं कि हमारी सुरक्षा में तैनात जवान कितनी मुश्किलों का सामना करते हैं।नक्सलियों के खात्मे के लिए जंगल पहाड़ों में बंदूक ढोकर उतरते चढ़ते अपने तन का पानी बहा देते हैं। एक हाथ मे बंदूक और पसीने से लथपथ ससमय अपनी ड्यूटी करने से अर्धसैनिक बल गुरेज नहीं करते लेकिन जब जंगलों में नक्सली ऑपेरशन के बाद वापस लौटते हैं तो फिर पानी के लिए उनकी जद्दोजहद देखकर पास से गुजरते हमारी संवाददाता ने उनकी समस्याओं को मीडिया में लाना जरूरी समझा।
जंगल से ऑपेरशन कर लौटने के बाद स्नान करने के लिए एक बाल्टी पानी की जुगाड़ में हमारे जवान और आम अवाम दोनों एक दिखते हैं। एक तरफ जवान जंगलों में नक्सलियों की टोह में सर से पांव तक पसीना बहाने में कोई कसर नहीं छोड़ते वहीं दूसरी तरफ दिनचर्या के कार्य निपटाने के लिए भी ऑपेरशन के बाद पानी पानी हो जाते हैं।
जवानों के लिए नहाने के पानी की व्यवस्था हमारी सिस्टम पर एक सवाल छोड़ जाता है कि आखिर सुरक्षा में तैनात जवानों की सुध लोकतंत्र का तंत्र क्यों न ले। कल्याणकारी भारत देश में यदि हमारी सुरक्षा और उग्रवाद के खात्मे में तैनात जवानों का भी कुछ कल्याण हो जाए तो हमें लगता है देश की प्रगति में यह एक पायदान ऊपर ले जाने में सहायक होगा।