विचार
वैश्विक स्तर पर आज मनाये जा रहे अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की प्रासंगिकता वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफी ज्यादा है।इस वर्ष का मुख्य थीम है :”We are the part of the solution for nature”.यानी हम समाधान का हिस्सा बने। भारतीय ग्रंथों में यथा-कठोपनिषद्, नरसिंह पुराण,स्कंधपुराण, विष्णु पुराण,अथर्ववेद, महाभारत, रामायण आदि में पर्यावरण संरक्षण के बारे में विस्तार से बतलाया गया है। डेविड टिलमैन ,पाल ऐहरिक, प्रो०दिव्यदर्शन पंत एवं इंटरनेशनल यूनियन फाॅर कंजरवेशन आफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस के प्रतिवेदन के आधार पर कहा जा सकता है कि जैवविविधता को क्षति पहुंचाने वाले कारण यथा-आवासीय क्षति,अतिदोहन, विदेशी जातियों के आक्रमण तथा सहविलुप्तता को दूर करते हुए प्रकृति के अनुसार सभी प्रजातियों को जीने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।जैव विविधता के संरक्षण हेतु “इन सीट” और “एक्स सीट” पर बल देने की जरूरत है। भारतीय धर्म ग्रंथ में भी लिखा है कि “ईशावास्य मिदं,सर्व यात्किच्चित जगात्यां जगत,तेन त्वक्तेन भुच्चीया मां गृध:कस्य स्विद धनम!!यानी इस आखिल ब्रह्मांड में जो कुछ जड़ चेतन है,उसका त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए,क्योंकि यह संपदा किसी की नहीं है। इसलिए कोरोना महामारी से उपजी समस्याओं को देखते हुए मानव अपने “इंट्रिजिक वैल्यू ” को बनाए रखते हुए जैविक धरोहर को सुरक्षित रखे। पृथ्वी पर जंतु व पादपों की कुल संख्या 1.5 मिलियन के लगभग है।ट्रापिकल जोन की अपेक्षा टेंपरेट जोन में जैव विविधता अधिक पायी जाती है। भारत का भूक्षेत्र विश्व का मात्र 2.4प्रतिशत है, लेकिन वैश्विक जातीय विविधता 8.1 प्रतिशत है।जिसके कारण भारत विश्व के 12 महाविविध देशों में एक है। यहां लगभग 45000पादप जातियां और इससे दूनी जंतु जातियाँ हैं। डेविड टिलमैन ने बताया है कि विविधता में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है।इस संदर्भ में पाॅल एहरलिक के “रिवेट पोपर परिकल्पना “काफी महत्वपूर्ण है।1984 में माईकल सीवर्थ और जेम्स टाइल्स द्वारा लिखी गई पुस्तक”ग्रीन हाउस एक्ट सी लेविल राइस”ने दुनिया को बतलाया कि कार्बन-डाई-ऑक्साइड बढ़ने से गर्मी और बर्फ पिघलने से किस प्रकार की समस्या उत्पन्न हो सकती है।आज मानव की आवश्यकता,लालच में तब्दील हो गई है,जिस कारण 12 प्रतिशत पक्षी,23 प्रतिशत स्तनधारी,32 प्रतिशत उभयचर तथा 31 प्रतिशत आवृतबीजी की जातियां विलुप्ति के कगार पर है।सच तो ये है कि जब से पृथ्वी पर मानव का आगमन हुआ है तब से विलोपन की मात्रा 1000गुणा तीव्र आंकी गई है।इस तीव्रता के लिए मानव और उनके क्रियाकलाप ही उत्तरदायी है।अमेजन वर्षा वन जिसे “पृथ्वी का फेफड़ा” कहा जाता है ,को भी सोयाबीन की खेती और जानवरों के चारागाह के नाम पर समाप्त कर दिया गया है जबकि अमेजन वन पृथ्वी के वायुमंडल का लगभग 20 प्रतिशत आक्सीजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है।जिसे मानवीय समुदाय कोरोना महामारी के दौरान अनुभव किया है।
लेखक: डाॅ0 एस के झा
समाजशास्त्री
उपर के वक्तव्य लेखक के अपने हैं