रामगढ़: दुलमी प्रखंड के क्षेत्र के कांग्रेस नेता सह समाजसेवी सुधीर मंगलेश ने कहा कि सोहराई परब कार्तिक अमावस्या से प्रारंभ होती है और यह त्यौहार पांच दिनों तक लगातार विभिन्न चरणों में मनाया जाता है। सोहराई का अर्थ है सहयोग न धान की कृषि के उपज में सहयोग करने वालीं शक्तियों का धन्यवाद प्रकट करना। सोहराई परब का जन्म आदिकाल में हुआ था क्योंकि कार्तिक मास पड़ने पर अथक परिश्रम करने के बाद जब धान की बालियां पकने लगती है ।तब उन्हें देखकर किसानों का मन आनंदित होता है। और वह अपने पशु एवं औजारों जो उसके धान खेती करने में सहयोगी रहे हैं उसी के खुशी में सोहराई परब करते हैं। जनजातीय जीवन पद्धति में सोहराय अपार खुशी का पर्व है जिन्हें फसलों के मदद से इंसान ने धरती पर अनाज उगाकर जीवन निवास का सबसे उत्तम तरीके की खोज की है उसी पशुधन को अपने उपज का पहला आस्वादन करने और इस अवसर पर खुशी को बांटने का परब है सोहराई। तेल देउआ,गठुउइर(गोहाल),गायजगा(धिंगुइन),गरइआ, बरदखुटा सहरइ परब मनाने का प्रमुख विधि है। झारखंडी परंपरा व पूर्वजों की धरोहर है सोहराय परब।