अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि मम् सुब्रते।पुत्रान् पौत्रांर्श्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते” ।।
रजरप्पा : रजरप्पा कोयलांचल क्षेत्र के शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में सुहागिनों ने बट सावित्री की विधि- विधान से पूजा अर्चना की एवं अपने पति की दीर्घायु होने की कामना की गई। इस दौरान विशालकाय बरगद के पेड़ के समीप सुबह से शाम तक उपवास व्रत किए सुहागिनों द्वारा फल- फूल धूप अगरबत्ती नारियल बेलपत्र प्रसाद आदि का बरगद पेड़ के समक्ष चढ़ावा किया ।एवं पेड़ के चारों ओर परिक्रमा कर रक्षा सूत्र भी बांधे। इस बाबत विभिन्न क्षेत्रों की पुजारी द्वारा सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुनाया गया ।बताया गया कि वट वृक्ष का पूजन और सावित्री सत्यवान की कथा स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थिति में हुआ था कहते हैं कि भद्रदेश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थे। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण- अवैधव्यं च सौभाग्यं दहि मम्…. भवन चौक भाग्यं के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दी ।कई वर्षों तक यह क्रम जारी रहा है इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर बरदिया की राजन तुम्हें एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी ।अमित्री देवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया कहते हैं कि साल्वो देश पूर्वी राजस्थान अर्थात अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था ।सत्यवान अल्पायु थे वेद के प्रख्यात ज्ञाता भी थे नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी ।परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया ,पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ भी दिन शेष रह गया था तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी। जिसका फल उन्हें बाद में मिला था और पूजा के समय टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियां स्थापित कर वट वृक्ष के नीचे जाकर पूजा अर्चना की गई ।तब से यह परंपरा युग-युगांतर काल से चलते आ रहा है और आज भी बड़े ही विधि विधान से पूजा अर्चना की जाने लगी।
रजरप्पा कोयलांचल क्षेत्र के चितरपुर,माइल सांडी,बोरोविंग, बडकी पोना छोटकीपोना, कुंदरू कला,लारी, रजरप्पा आवासीय कालोनी सुकरीगडा,मारगमरचा, बारलौंग, आदि दर्जनों गांव के अलावे दुलमी प्रखंड क्षेत्र के सिरू, प्रियातू कुल्ही पोटमदगा सोसो उसरा कोरचे ,ठुठूआ, सिकनी,चामरोम,बोंगासरी,मदगी, आदि पास पड़ोस के ग्रामीण इलाकों में सुहागिन महिलाओं द्वारा एक दूसरे महिला के साथ सिंदूर भी खेली एवं धूमधाम से वट सावित्री की पूजा अर्चना किया।