रामगोपाल जेना
चक्रधरपुर /खरसावां: राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र, खरसावां के कलाकारों ने नृत्य कला को भारत के कोने- कोने में पहुंचा कर एक नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
झारखंड में मुख्य रूप से छऊ नृत्य की तीन शैलियां प्रचलित हैं। सरायकेला शैली, मानभूम शैली एवं खरसावां शैली। खरसावां शैली छऊ नृत्य का प्रदर्शन सरायकेला- खरसावां जिले के खरसावां, सरायकेला, कुचाई एवं राजनगर प्रखंड जबकि पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर, सोनुआ, बंदगांव, नोआमुंडी सहित कई प्रखंडों के सैकड़ों गावों में किया जाता है । कहते हैं बसंत के आगमन के साथ ही जब धरा अपने वसनों से सुसज्जित होकर संसार के हृदय को मोहने लगती है तब इस क्षेत्र के कलाकार अपने अपने गावों में आसर का निर्माण कर जिस कला को प्रदर्शित करते हैं उसे छऊ कहते हैं। छऊ का शाब्दिक अर्थ मुखौटा होता है परंतु खरसावां शैली के नृत्य विशारदों ने छऊ का अर्थ छाया यानी प्रतिबिंब से लेकर इस नृत्य का प्रदर्शन किया। बांसुरी एवं मोहरी के मधुर स्वर के साथ -साथ ढोल व नगाड़े की थाप में प्रदर्शित होने वाली यह नृत्य न केवल क्षेत्र की कला संस्कृति है बल्कि ईश आराधना का माध्यम भी है। चैत्र पर्व के रूप में आयोजित होने वाली यह कला जन-जन के ह्रदय में बसी है। खरसावां राजघराने के साथ साथ स्वर्गीय गुरु वनमाली पति, यदु बिषई, राम घोडाई, हरि मोहंती, गोलोक बिहारी नायक, भोला नाथ गंतायत सहित दर्जनों पूर्व गुरुओं ने खरसावां शैली छऊ नृत्य कला को स्थापित किया। वर्तमान में राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के निदेशक गुरु तपन कुमार पटनायक, गुरु कामाख्या प्रसाद षड़ंगी, मोहम्मद दिलदार, बसंत कुमार गंतायत एवं उनके साथियों के प्रयास तथा केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा, खरसावां के विधायक श्री दशरथ गागराई एवं चक्रधरपुर के लोकप्रिय विधायक एवं खरसावां छऊ के वरीय कलाकार सह कला प्रेमी श्री सुखराम उरांव के सहयोग से इस कला को एक नया आयाम मिला है। राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र, खरसावां के कलाकारों ने इस नृत्य कला को भारत के कोने- कोने में पहुंचा कर इसे एक नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।