पांकी: पांकी प्रखंड के कोनवाई,बुढ़ाबार ‘गोड़ियारी,बान्दुबार,हरिओमनगर,चौफाल, चंद्रपुर,हरना,बनखेता,डंडार,बांकी कला,तेतराई सहित प्रखंड के सभी गांवो में धूमधाम से जितिया व्रत यानी जीवित पुत्रिका व्रत मनाया गया।मालूम हो कि संतान की मंगलकामना व दीर्घायु को लेकर बुधवार को महिलाओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा थी।व्रती महिलाएं नदि व घरों में स्नान किया।महिलाओं ने स्नान के बाद अपनी-अपनी पितराईनों व जीतवाहन भगवान को बेलपत्र व तेल अर्पित किए।तथा शाम को पुष्प,दीप,अगरबत्ती,सिंदूर,अक्षत अर्पित कर विधिवत पूजा-अर्चना की।कई महिलाएं ने संतान की संख्या के आधार पर जीतवाहन भगवान को धागे में पिरोकर धारण किया।पूजा करने वाले कुशन्ति देवी,संध्या सिंह,क्रांति देवी,कौशल्या देवी,चतुर कुंवर,मालती देवी,बबीता देवी, पानों देवी,सरिता देवी सहित अनेकों महिलाएं पूजा की।जैसा कि जितिया का पर्व हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है।पुत्र की दीर्घ,आरोग्य और सुखमयी जीवन के लिए इस दिन माताएं व्रत रखती हैं।तीज की तरह यह व्रत भी बिना आहार और निर्जला रखा जाता है।यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है।सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है,मालूम हो कि जितिया व्रत की कथा बहुत समय पहले की बात है कि गंधर्वों के एक राजकुमार हुआ करते थे जिनका नाम था जीमूतवाहन।बहुत ही पवित्र आत्मा,दयालु व हमेशा परोपकार में लगे रहने वाले जीमूतवाहन को राज पाट से बिल्कुल भी लगाव न था।लेकिन पिता कब तक संभालते। वानप्रस्थ लेने के पश्चात वे सबकुछ जीमूतवाहन को सौंपकर चलने लगे।लेकिन जीमूतवाहन ने तुरंत अपनी तमाम जिम्मेदारियां अपने भाइयों को सौंपते हुए स्वयं वन में रहकर पिता की सेवा करने का मन बना लिया।अब एक दिन वन में भ्रमण करते-करते जीमूतवाहन काफी दूर निकल आया। उसने देखा कि एक वृद्धा काफी विलाप कर रही है। जीमूतवाहन से कहा दूसरों का दुख देखा जाता था उसने सारी बात पता लगाई तो पता चला कि वह एक नागवंशी स्त्री है और पक्षीराज गरुड़ को बलि देने के लिये आज उसके इकलौते पुत्र की बारी है,जीमूतवाहन ने उसे धीरज बंधाया और कहा कि उसके पुत्र की जगह पर वह स्वयं पक्षीराज का भोजन बनेगा।अब जिस वस्त्र में उस स्त्री का बालक लिपटा था उसमें जीमूतवाहन लिपट गया। जैसे ही समय हुआ पक्षीराज गरुड़ उसे ले उड़ा।जब उड़ते उड़ते काफी दूर आ चुके तो पक्षीराज को हैरानी हुई कि आज मेरा यह भोजन चीख चिल्ला क्यों नहीं रहा है इसे जरा भी मृत्यु का भय नहीं है।अपने ठिकाने पर पंहुचने के पश्चात उसने जीमूतवाहन का परिचय लिया। जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया। पक्षीराज जीमूतवाहन की दयालुता व साहस से प्रसन्न हुए व उसे जीवन दान देते हुए भविष्य में भी बलि न लेने का वचन दिया।अथार्त इस प्रकार मान्यता है कि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्याण के ये व्रत रखा जाता है।इस प्रकार पांकी प्रखंड में संतान की दीर्घायु के लिए रखने वाले जिउतिया पर्व गुरुवार को पारण के साथ समाप्त हुवा।