आर्थिक संकट जूझ रहे हैं रिक्शा चालक
मिहिजाम से मिथलेश निराला की रिपोर्ट
मिहिजाम : दूसरों को मंजिल तक पहुंचाने वाले का खुद के मंजिल का कोई पता नहीं है। ये बातें रिक्शा चालकों पर सटीक बैठ रहा है। बताते चलें कि मिहिजाम शहरी क्षेत्र में चितरंजन स्टेशन के समीप अब मात्र गिने चुने रिक्शा चालक ही बच गए हैं। जो किसी तरह प्रतिदिन 50 से 60 रुपया कमाने के लिए जद्दोजहद कर रहे है। पूरी जिंदगी रिक्शा चलाते हुए अपनी उम्र की अंतिम पड़ाव में खड़े हैं। परिवार के भरण पोषण का इतना बड़ा जिम्मा है कि जिंदगी के लास्ट समय में भी रिक्शा खींचने को मजबूर हैं।
क्या कहते हैं रिक्शा चालक ?
रिक्शा चलाने वाला राम प्रकाश गुप्ता ,अशोक मंडल ,रामप्रवेश, उत्तम ने बताया कि एक तो पहले ही हम लोगों को टेंपो ने जान मार दिया था। उसके बाद से रहा सहा कसर टोटो रिक्शा ने पूरी कर दिया। टोटो रिक्शा के बाज़ार में आ जाने से हम रिक्शा चालकों का कमर ही टूट चुका है। अब तो सवारी इन टोटो पर ही बैठकर निकल जाते हैं। हम सभी रिक्शा चालक मुंह ताकते ही रह जाते हैं। जिससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम लोगों के भरण पोषण हेतु अब कोई रास्ता ही नहीं बच पाया है।
रेलयात्री ही मुख्य सहारा
चितरंजन रेलवे स्टेशन के समीप इन रिक्शा चालकों का मुख्य सहारा उतरने वाले रेल यात्री ही हैं। जिसके भाड़े से ही इन लोगों का भरण पोषण होता था। लेकिन पिछले दो वर्षों से लॉक डाउन होने के कारण रेलवे ने दर्जनों ट्रेन को पहले से ही रद्द कर चुका है। जिससे रेलयात्री के आवागमन में काफी कमी आई है। यही दयनीय स्थिति जामताड़ा जिला मुख्यालय स्थित रिक्शा चालकों का है।
स्टेशन रोड पर रिक्शों की कतार लगा रहता था
बताते चलें कि मिहिजाम शहर में किसी वक्त पचास से साठ रिक्शा चालकों की लंबी कतार स्टेशन रोड एवम् रेलवे फाटक के समीप लगा रहता था। जो कि अब घटकर मात्र दो चार में ही सिमट गया। जिससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि रिक्शा चालकों के ऊपर किस कदर से कहर टूटा है। रिक्शा चालकों का कहना था कि पिछले 2 वर्षों में लॉक डाउन ने हम लोगों को अपनी आगोश में लेकर पूरी तरह से खत्म कर दिया है। स्थिति यह है कि दाने दाने को मुहताज हो गए हैं।