पाकुड़ : शहर के थानापाड़ा स्थित श्री गुरूदेव कोचिंग सेन्टर परिसर में सामाजिक दूरी बनाते हुए सरकार के नियमानुसार भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी बाबू वीर कुँवर सिंह की जयन्ती मनाया गया।जंयती के तहत उपस्थित श्री सारस्वत स्मृति के कार्यकारी अध्यक्ष भागीरथ तिवारी,रामरंजन सिंह समेत अनके गणमतान्य लोगों ने उनके चित्र पर माल्यापर्ण किया और उनके जीवन पर प्रकाश डाला।मौके पर मौजूद पंतजलि के जिलाध्यक्ष संजय कुमार शुक्ला ने उनकी जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबू वीर कुँवर सिंह 80 वर्ष के उम्र में लड़ने और बिजय प्राप्त करने का जज्बा रखते थे । अपने ढ़लते उम्र और बिगड़ते सेहत के बाबजूद भी उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर सामना किया, अंग्रेजों को कई जगह और कई बार हराया।समृति के सचिव रामरंजन कुमार सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि बिहार के शाहाबाद (भोजपुर) जिले के जगदीशपुर गाँव में जन्मे बाबू वीर कुँवर सिंह का जन्म 23 अप्रैल 1777 में प्रसिद्ध भोज के वंशजों में हुआ, इनके वंशज जागीरदार थे । सहृदय और लोकप्रिय बाबू कुँवर सिंह शाहाबाद की कीमती और अतिविशाल जागीरों के मालिक थे ।1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबू वीर कुँवर सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी । अंग्रेजों को भारत से भगाने के देश के सभी वर्गों के लोगों ने तन-मन-धन से सहयोग किया ! मंगल पाण्डेय की बहादुरी ने सारे देश को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया । ऐसे हालात में बाबू कुँवर सिंह भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया ।अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये । वहीं पाकुड़ नगर परिषद् क्षेत्र अंतर्गत झामुमो जिला कमिटी की ओर से बाबू वीर कुंवर सिंह जयंती मनाई गई। झामुमो जिला अध्यक्ष श्याम यादव ने सामाजिक दूरी एवं सरकार द्वारा जारी निर्देशो का का पालन करते हुए,पाकुड़ के वीर कुंवर सिंह भवन (पुराना टाउन हॉल) के प्रांगण में स्थित वीर कुंवर सिंह की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया। जिला अध्यक्ष श्याम यादव ने जयंती पर उन्हें याद करते हुए कहा की वीर कुंवर सिंह मालवा के सुप्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे।इन्हें भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के रूप में जाना जाता है।अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे।इन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी अपने अपूर्व साहस, बल और पराक्रम का बोध कराया था। आज भी इनकी वीरता के मिसाल के मिसाल दिए जाते है।इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी थी।मौके पर पार्टी के कई कार्यकर्ता मौजूद थे।