चतरा(धनंजय तिवारी)ः सरकार द्वारा गर्भवती, धात्री महीलाओं के अलावे किषोरियों एंव बच्चों को कुपोषण से बचाने के उद्धेष्य से बाल विकास परियोजना के द्वारा जिले में चलाये जा रहे योजनाओ का समुचित लाभ सुदुरवर्ती गंावो के लोगो को नहीं मिल पा रहा है। सुदुर क्षेत्रों के आंगनबाडी केंद्रो पर हमेंषा ताला लटके रहतें हैं। इसकी षिकायत स्थानिय ग्रामीणों द्वारा जनप्रतिनिधि से लेकर वरिय अधिकारियों तक को समय समय पर दे दी जाती है। लेकिन केंद्र के संचालन में कोई सुधार नहीं होता है।सरकारी आंकडांें के मुताबिक वर्तमान समय में एक हजार एक सौ दस आंगनबाडी केंद्र जिले मंे संचालीत है। इससे 1 लाख 12 हजार 652 लोगांे को लाभ देने के नाम पर प्रतिमाह लाखांे रूपये खर्च किए जाते हैं। परंतु शहर तथा प्रखंड मुख्यालय व मुख्य सडक के किनारे संचालित आंगनबाडी केंद्रों को छोड कर अधिकतर आंगनबाडी केंद्र सरकार व पदाधिकारियों के निर्देष पर नहीं सेविकाओं के मर्जी पर चलता है। सुदुर ग्रामीण क्षेत्रों के आंगनबाडी का हाल तो और भी बुरा है। उक्त केंद्र कभी खुलते ही नही। आंगनबाडी केंद्रो की स्थिति से संबंधित पदाधिकारी भी अवगत रहते हैं। सुत्रो के मुताबिक संबंधीत सीडीपीओ को प्रति सेविका द्वारा पोषाहार राषी में बतौर कमीषन एक से डेढ़ हजार रूपया सुपरवाईजर के माध्यम से या सीधे दिया जाता है। परिणाम स्वरूप सेविकाओं के द्वारा समुचित मात्रा में व समय पर लाभुकों के बीच पोषाहर का वितरण नहीं किया जाता है। और केंद्रो के समुचित लाभ से वंचित रह जाते हैं जरूरतमंद। लाभुको के बीच पोषाहार के वितरण के लिए तीन तरह के माप दंड र्निधारित किए गए है। इसमें 3-6 वर्ष के बच्चों को 60 ग्राम चावल 30 ग्राम दाल 8 ग्राम हल्दी तथा 2 ग्राम नमक र्निधारित किया गया है। इसी प्रकार धात्री महीला, किषारीयों व गर्भवती महीलाओं के लिए भी मापदंड र्निधारित है। पुरे जिलेे में छह सीडीपीओं कार्यालय संचालित हैं। सदर सीडीपीओं कार्यालय के अतंर्गत 212 सिमरिया अतंर्गत 217 हंटरगंज में 185 इटखोरी में 202 प्रतापपुर में 144 टंडवा सीडीपीओ कार्यालय के अंतर्गत 150 केंद्र संचालित है। इस संबंध में पदाधिकारी कमीषन की बात को सिरे से नकारतें हुए सुदुर गंावों के केंद्र बंद रहने की षिकायत मिलने पर कार्यवाई करने कि बात करते है। साथ ही सभी आंगनबाडी केंद्रो का समय-समय पर निरीक्षण करने तक की बात कहते हैं।जबकि ग्रामीणों का कहना होता है कि पदाधिकारियों के निरीक्षण की सुचना पहले ही सेविकाओं को मिल जाती है और वह खाना पूर्ति के लिए केंद्र खोल देती है। जबकि सुदुर क्षेत्रो में निरीक्षण के लिए कोई पदाधिकारी नही जाते है। कई दफें तो आंगनबाडी केंद्रो में अनिमियतता का विरोध करने पर आम लोगों को उनके संबंधियो के कोपभाजन का षिकार भी होना पड़ता है। सेविकाओ का हौसला इतना बुलंद रहता है कि ग्रामीणों को बिंदास होकर कहीं भी षिकायत करने कि बात कहती है। मामला चाहे जो भी हो पदाधिकारियों और सेविकाओं के इस बेजोड गठजोड के कारण सरकार द्वारा मिलने वाला लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है।