सोसाइटी
लेखक:तंजीला नाज़
अगर ऐसा होता ,अगर वैसा होता तो हम ये कर जाते मै वो कर जाती अगर कोई साथ होता तो आज जो हूं वो नहीं होती मुझे लगता है ये महज़ एक कहावत है मेरे ख्याल में आपितू सब की एक अलग दास्तां है इस अगर मगर के साथ हम सोचते कुछ हैं करते कुछ और हैं।आज मै इस मौजू पर थोड़ा बहुत लिखने की कोशिश कर रही हूं उम्मीद है आप सभी दोस्तों को पसंद आएगा दोस्तों जब हम कुछ करें किसी के लिए या अपने लिए तो ये ज़रूरी ना समझे की उन्हे बताया जाए अगर आप या हम में से कोई भी कहीं भी कुछ करते है तो उसे अपने तक सीमित रखें ।ताकि जिस भी इंसान के लिए हम कुछ करे उससे बिल्कुल। ना जताएं की मैंने आपके लिए ऐसा किया हो सकता है उसे एक दिन एहसास हो की मेरे लिए किसने क्या किए और आप पर उसे फख्र हो।बेशक वो आपको समझे या ना समझे इसकी जरा सी भी परवाह किए बगैर उस काम को करते जाएं जो आपने किसी के लिए सोच रखे हैं ।मुझे लगता है इससे बड़ी खुशी कुछ होती ही नहीं है।खैर ये मेरा मानना है । तमाम जन अपने हिसाब से अपने लिए क्या सही क्या गलत है खुद ही डिसाइड करते है। और ये हक भी है की हम सब अपने बारे में खुद ही सोचे मगर एक ख्याल रहे किसी को तकलीफ़ देनी हो तो खुदा के लिए उसे ना सोचे मशवरा भी देना हो किसी को अगर तो सामने वाला को देख कर सोच समझ कर दें ताकि आप जो कह रहे है उसे ये सही लग भी रहा है या नहीं ये जानना जरूरी है वरना जिसे जो अच्छा लगे वो करें उसमे हमें कहीं पैर अड़ाने की जरूरत ही न हो । इंसान हो है यानी हम सब चलते है सोचते बात करते है सब कुछ सही लेकिन काम हम अपनी मर्ज़ी के ही करते हैं जो हमें उचित लगता है जिसमें मेरी अभिरुचि है भले ही मजबूरी में कभी अलग अलग काम करना पड़ जाता है और उस काम को देख अपना लक्ष्य ही बदल लेते है ।खैर जो भी हो ये सब अगर मगर में ही होता है हमें इससे बचना चाहिए ।हमें ईमानदारी से हर वो काम करना चाहिए । बस इतनी सी बात ने इतना उलझा दिया की बातों ही बातों में बहुत लंबी कहानी हो गई। फिर मिलती हू अगले फसाने के साथ तब तक आप सब आराम करें मेरी बातों पर गौर करें।। शुक्रिया