रांची: वर्तमान भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जितनी तीव्र गति से सामाजिक विचलन में वृद्धि हो रही है।
वह इंसान को सोचने के लिए विवश कर रहा है। सामाजिक परिवेश में कुछ इस तरह से बदलाव आ गया है कि यहाँ सामाजिक नियंत्रण तो बहुत दूर की बात रही ,अब तो पारिवारिक सदस्यों का एक दूसरे पर नियंत्रण और प्रभाव भी कमजोर पड़ता जा रहा है। दुमका में अंकिता की घटना के संदर्भ में जब समाजशास्त्री डॉ०एस०के०झा से वर्तमान सामाजिक व्यवस्था व अंकिता के संदर्भ में प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की गयी तो उन्होंने सपाट शब्दों में कहा कि कहीं न कहीं सामाजिक नियंत्रण का एक मुख्य आधार अनौपचारिक नियंत्रण का कमजोर पड़ना ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की वजह है।
सामाजिक प्रतिमान जिस दिशा की ओर बढ़ रहा है,उससे मानव की मनोवृत्ति में होनेवाले परिवर्तन का सहज ही आकलन किया जा सकता है। वर्तमान समाज में नित दिन अपराध का खौफ बढ़ता जा रहा है। सामाजिक नियंत्रण का एक मुख्य आधार औपचारिक नियंत्रण है,जिसका मजबूत साधन कानून है, परंतु कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि ससमय अपराधी को दंडित करना असंभव हो जाताहै।
इसके अतिरिक्त कानूनी प्रक्रिया काफी लंबी और मंहगी है,जिसके कारण देर से न्याय मिलने का कोई औचित्य नहीं रह जाता और पीड़ित ठगा सा रह जाता है। वहीं दूसरी ओर भारतीय सामाजिक और संस्कृतिक व्यवस्था पर वैश्वीकरण तथा पश्चिमीकरण के नाकारात्मक प्रभाव को फैलाने में सोशल मीडिया भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
विशेषकर जब से बच्चों के हाथों में स्मार्ट फोन आया है, उस समय से उसका सदुपयोग के साथ-साथ काफी दुरुपयोग भी किया जाने लगा है। अब इसका नकारात्मक प्रभाव स्पष्ट नजर आने लगा है।नतीजा सामाजिक अनुरुपता बनाए रखने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है जबकि विचलन बढ़ता जा रहा है।
पारिवारिक अनुशासन और नियंत्रण बेहद ढ़ीला होता जा रहा है।परीक्षा में कम अंक देने पर दुमका में 9वीं -10 वीं के बच्चों द्वारा शिक्षकों को पेड़ से बांधकर पीटना , बच्चों के दुस्साहस और अनुशासनहीनता को दर्शा रहा है।सामाजिक मूल्यांकन का पैमाना भी दिन प्रतिदिन बदलता जा रहा है, जिसके कारण समाज में मानवता खत्म हो रही है और दानवता अपना स्थान बना रही है।लोगों में संवेदनहीनता बढ़ रही है।
आज अंकिता की घटना के लिये जहां न्याय की मांग की जा रही है, वहीं चतरा में एसिड एटैक के साथ- साथ चार-पांच वर्ष आयु समूह या नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार और हत्या की घटनाएं इंसान को सोचने- विचारने के लिए विवश करती है। डा०झा ने कहा कि वर्तमान समाज में सफेदपोश अपराध में भी काफी वृद्धि हुई है ।
अगर सामाजिक परिवेश को समृद्ध बनाना है ,तो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के साथ – साथ नैतिक शिक्षा एवं अनौपचारिक नियंत्रण पर बल देना होगा।