विचार
मानव जीवन की सार्थकता का अर्थ आज क्या है? इसकी सार्थकता कहां तक निहित है? सभी प्राणियों में मानव जीवन को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सभी प्राणियों में मानव ही सबसे उत्तम माना गया है। कई विशेषज्ञों द्वारा यह कहा जाता है कि मनुष्य को 84 लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। हमें अपने जीवन को अर्थ पूर्ण बनाना चाहिए। 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित एक अवधारणा के अनुसार मानव के विकास की परिभाषा महबूब उल हक और भारतीय अर्थशास्त्री नोबेल विजेता अमर्त्य सेन द्वारा दी गई थी कि मानव के गुणों और विकल्पों में वृद्धि होना ही मानव विकास कहलाता है। सभी प्राणियों में मानव ही एक ऐसा प्राणी है जिसमें दया, भाव और करुणा जैसी भावना होती है। केवल मनुष्य ही ऐसा जीव है जो अपने भरण-पोषण के अलावा दूसरों के भरण पोषण और आवश्यकताओं का ख्याल रखता है और मनुष्य ही अपने भोजन के अलावा दूसरों के भोजन के बारे में सोचता है। अगर हम मानव जाति के विकास या उपलब्धियों के बारे में विचार करें तो आज मनुष्य चांद से लेकर मंगल ग्रह तक में रहने की सोच रखता है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो असंभव कार्य को भी संभव में बदल सकता है। मनुष्य जाति ही है जिसने पाताल से आकाश तक को एक कर दिखाया है। हर क्षेत्र में मानवजाति ने अपने संघर्ष से अनेकों उपलब्धियां हासिल कर ली है। चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो मानव विकास के क्षेत्र में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक उपलब्धि हासिल की और हम मानव जाति अपने आप में सभी प्राणियों से सर्वश्रेष्ठ समझने लगे। हम प्रकृति को भी अपने अधीन समझने लगे हम सभी मनुष्य जाति यह भूल गए कि जिस प्रकृति ने हमें जन्म दिया है हम उसी प्रकृति को चकमा देने में लगे थे। हम यह भूल गए कि सृष्टि और हमारा शरीर पंचतत्व से मिलकर ही बना है। पृथ्वी तत्व, वायु, अग्नि और आकाश इसी प्रकृति ने हमें जीवन दिया है। लेकिन हमने प्रकृति के साथ ही बहुत हद तक खिलवाड़ करना शुरू कर दिया। हमलोगों ने प्रकृति के विपरीत मानव निर्मित पर्यावरण बनाया। नई-नई तकनीकों के प्रयोग से कल कारखानों का निर्माण किया, बड़े- बड़े शहरों का निर्माण किया, उची उची इमारतें बनाई, सड़कें, फ्लाईओवर, बड़े-बड़े पूल, मोटर गाड़ियां, हवाई जहाज, मोबाइल फोंस, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, कृषि क्षेत्र, जल को प्रदूषित किया, जंगल काटे पेड़ों से कागज बनाए, जंगली जानवरों को बेघर कर दिया, मृदा को दूषित किया, पक्षियों से छेड़-छाड़ की, परमाणु हमले किए, जैविक अविष्कार किया, हमने मानव मस्तिष्क तक की भी नकल कर दिखाया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब हमारी जीवन की जरूरत बन चुकी है जाने अनजाने में हमने प्रकृति को अपने सुविधाओं के लिए नुकसान पहुंचाया। और इसके लिए मानव जाति ही पूर्णतया जिम्मेवार है। हमने अपने लिए जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, खाद्य पदार्थों में मिलावट, इलेक्ट्रॉनिक रेडिएशन, ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़ सूखा, सुनामी जैसे महामारी खतरों को खुद पैदा किया। इसका नतीजा यह हुआ कि अब मानव जाति ने अपने लिए जाने अनजाने में अब हम सभी खुद को एक बहुत बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक्स, क्लॉथस जैसे कचरे को इकट्ठा कर लिया है और उस पर हम सभी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जिसका नतीजा आज वैश्विक महामारी कोविड-19 तो कभी ब्लैक फंगस, वाइट फंगस वायरस एवं विभिन्न प्रकार की बीमारियों से मौत के चपेट में आते जा रहे हैं। घरों में बंद रहना, ऑक्सीजन की कमी, सामाजिक दूरी बनाए रखना, मास्क का दैनिक जीवन में उपयोग क्या यही परिणाम सोचा था मानव जाति ने? क्या यही सार्थकता है मनुष्य की हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता है। कोरोना के प्रकोप से ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है इसलिए आवश्यकता है हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने की। जल को शुद्ध रखने की। प्लास्टिक का उपयोग बंद करने की। उचित जगह पर कचरे का समुचित निस्तारण करना अति आवश्यक है। कीटनाशक एवं विभिन्न रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद करके जैविक खाद के प्रयोग को प्रोत्साहन देना। प्राकृतिक जल स्रोतों नदियों यथा कुआं, तालाब, पोखरा नदी, समुद्र आदि को यथासंभव स्वच्छ एवं साफ रखने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को शुद्ध रखने के अभियान को अधिक क्रियाशील करने की जरूरत है।
लेखक: अर्चना राणा, जामताड़ा