विचार
एक शहर के एक स्कूल में एक शिक्षिका थीं। वह कक्षा के सभी बच्चो के साथ समान रूप से व्यवहार नहीं करती थी और ना ही कम प्रतिभा वाले बच्चों में विशेष रूचि लेती थी ! वह उनमे १. प्रतिभाशाली २. अच्छा ३. सामान्य ४. सामान्य से नीचे ! इस प्रकार वर्गीकृत करके सामान्य एवं उससे नीचे वाले बच्चों का उपहास करती थी !
कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको एक आंख नहीं भाता था । उसका नाम राकेश था। राकेश मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आ जाया करता था ! व्याख्यान के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता था यानि .कि राकेश शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से इधर उधर भटकता रहता था ! .धीरे धीरे शिक्षिका को राकेश से घृणा बढ़ने लगी। कक्षा में घुसते ही राकेश शिक्षिका की आलोचना का निशाना बनने लगता। सारे बुराई के उदाहरण राकेश के नाम पर किये जाते थे और बाकी बच्चे उस पर उपहास वाली हंसी हंसते.और शिक्षिका को उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त होता ! राकेश ने किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था।
शिक्षिका को वह एक पत्थर की तरह लगता जिसके अंदर भावनाये एवं अपने भविष्य के लिए कोई सोच नहीं थी ! प्रत्येक झाड़ , व्यंग्य और सजा के जवाब में वह बस अपनी खाली नज़रों से उन्हें देखा करता और सिर झुका लेता । शिक्षिका को अब इससे गंभीर चिढ़ हो चुकी थी।
जब रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो शिक्षिका ने राकेश की प्रगति रिपोर्ट में यह सब बुरी बातें लिख मारी । प्रगति रिपोर्ट माता पिता को दिखाने से पहले प्रधानाध्यापक के पास जाया करती थी। उन्होंने जब राकेश की रिपोर्ट देखी तो शिक्षिका को बुला लिया। प्रधानाध्यापक ने कहा “मिस बच्चे में कुछ तो अच्छाई भी होगी ,इस प्रगति रिपोर्ट में कुछ तो प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है इससे राकेश के पिता बिल्कुल निराश हो जाएंगे।”
सर “मैं क्षमा माँगती हूँ, लेकिन राकेश एक बिल्कुल ही अशिष्ट और निकम्मा बच्चा है । मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी प्रगति के बारे में कुछ लिख सकती हूँ। “शिक्षिका घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ आईं।
प्रधानाध्यापक ने चपरासी के हाथ शिक्षिका की मेज पर राकेश की पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट रखवा दी । अगले दिन शिक्षिका ने कक्षा में प्रवेश किया तो प्रगति रिपोर्ट पर नजर पड़ी। पलट कर देखा तो पता लगा कि यह राकेश की रिपोर्ट हैं। “पिछली कक्षाओं में भी निश्चय ही ऐसा रहा होगा !” उन्होंने सोचा और पिछली एक रिपोर्ट खोली। रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट उसकी प्रशंसा एवं उच्च कोटि की क्षमताओं से भरी पड़ी है। “राकेश जैसा बुद्धिमान बच्चा मैंने आज तक नहीं देखा।” “बेहद प्रतिभाशाली बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षक से बेहद लगाव रखता है।” ”
अंतिम परीक्षा में भी राकेश ने प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। “शिक्षिका ने अनिश्चित स्थिति में एक अन्य प्रगति रिपोर्ट खोली।
एक टिपण्णी में लिखा था “” राकेश ने अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव लिया। उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। राकेश की माँ को अंतिम चरण का कैंसर हुआ है। घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है। राकेश की माँ मर चुकी है और इसके साथ ही उसके जीवन की चमक और रौनक भी। । उसे बचाना होगा…इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।
यह पढ़कर शिक्षिका के मन पर भयानक बोझ हावी हो गया। कांपते हाथों से उन्होंने प्रगति रिपोर्ट बंद की । आंसू उनकी आँखों से एक के बाद एक गिरने लगे! उसके मन में संवेदनशीलता जाग रही थी ! उन्हें अपने कर्तव्य का बोध होने लगा और अपने पद की गरिमा की सोच उत्पन्न होने लगी !
अगले दिन जब शिक्षिका कक्षा में दाख़िल हुईं तो उनका व्यवहार औसत बच्चो के लिए बदल चुका था क्योंकि राकेश के भविष्य की चिंता वह अपने दिल में महसूस कर रही थीं ! व्याख्यान के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल राकेश पर दागा और हमेशा की तरह राकेश ने सिर झुका लिया। शिक्षिका मुस्कुरा रही थीं उसने राकेश को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर जबरन दोहराने के लिए कहा। शिक्षिका उसे पढ़ाई के लिए हर रोज प्रेरित करती थी और प्रश्न का सही उत्तर देने पर तालियाँ बजाती बल्कि सभी से भी बजवाती ..! फिर तो यह दिनचर्या बन गयी। प्रत्येक अच्छा उदाहरण राकेश के कारण दिया जाने लगा । धीरे-धीरे पुराना राकेश जड़ता ,मूढ़ता एवं संवेदनहीनता से बाहर आ गया। अब शिक्षिका को सवाल के साथ जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वह रोज बिना त्रुटि उत्तर देकर सभी को प्रभावित करता और नये नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी।
उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए होते, कपड़े भी काफी हद तक साफ होते जिन्हें शायद वह स्वयं धोने लगा था। उसका पुरुषार्थ जाग चुका था ! देखते ही देखते वर्ष समाप्त हो गया और राकेश ने प्रथम स्थान हासिल कर दूसरी कक्षा में पहुँच गया ।
विदाई समारोह में सभी बच्चे शिक्षिका के लिये सुंदर उपहार लेकर आए और टेबल पर ढेर लग गये । इन खूबसूरती से पैक हुए उपहार में एक पुराने अखबार में बिना सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था। बच्चे उसे देखकर हंस पड़े। किसी को जानने में देर न लगी कि उपहार के नाम पर ये राकेश लाया होगा। शिक्षिका ने उपहार के पहाड़ में से इस छोटे से पैक को लपक कर खोलकर देखा तो उसके अंदर एक महिलाओं की इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने वाला एक बड़ा सा कड़ा था जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे। शिक्षिका ने चुपचाप इस इत्र को खुद पर छिड़का और हाथ में कंगन पहन लिया। आखिर राकेश से रहा न गया और शिक्षिका के पास आकर खड़ा हो गया और कहा कि “आज आप में से मेरी माँ जैसी सुगंध आ रही है।”
दिन सप्ताह, सप्ताह महीने और महीने साल में बदलने लगे , हर साल के अंत में शिक्षिका को राकेश से एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता जिसमें लिखा होता कि “इस साल कई नए शिक्षकों से मिला। मगर आप जैसा कोई नहीं था।” फिर राकेश की शिक्षा समाप्त हुई और पत्रों का सिलसिला भी। कई साल आगे गुज़रे और शिक्षिका रिटायर हो गईं। एक दिन उन्हें अपनी मेल में राकेश का पत्र मिला जिसमें लिखा था:
“इस महीने के अंत में मेरी शादी है और आपके बिना शादी की बात मैं नहीं सोच सकता। एक और बात .. मैं जीवन में बहुत सारे लोगों से मिल चुका हूं।। आप जैसा कोई नहीं है………डॉक्टर राकेश
साथ ही विमान का आने जाने का टिकट भी लिफाफे में रखा हुआ था। शिक्षिका भावनाओं में भर गयी और खुद को हरगिज़ न रोक सकी और वह दूसरे शहर के लिए रवाना हो गईं। शादी के दिन जब वह शादी की जगह पहुंची तो थोड़ी देर हो चुकी थीं। उन्हें लगा समारोह समाप्त हो चुका होगा.. मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि शहर के बड़े लोग ,डॉक्टर एवं बड़े व्यापारी और यहां तक कि लड़की वाले भी सोच कर थक गये थे. कि आखिर कौन आना बाकी है…मगर राकेश समारोह में शादी के मंडप के बजाय द्वार की तरफ टकटकी लगाए उनके आने का इंतजार कर रहा था। फिर सबने देखा कि जैसे ही यह पुरानी शिक्षिका ने द्वार से प्रवेश किया राकेश ने उनका भावभीना स्वागत किया और हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वही पुराना उपहार स्वरुप दिया हुआ कंगन पहना हुआ था और उन्हें सीधा मंच पर ले गया। माइक हाथ में पकड़ कर उसने कुछ यूं बोला “प्रिय बंधुओ आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको उनसे मिलाउंगा।।।……..यह मेरी माँ हैं !!! ( शिक्षिका इस सम्मान को पाकर इस सुंदर कहानी को केवल शिक्षक और शिष्य के रिश्ते के कारण ही मत सोचिए । संवेदनहीनता से बाहर आकर सोचियेगा , अपने आसपास देखें राकेश जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, संवेदनशीलता , सहयोग और स्नेह नया जीवन दे सकते है.! सबके अंदर ईश्वर के दर्शन करे क्योंकि परमात्मा का अंश जीवात्मा के रूप में हर प्राणी में है और प्राणिमात्र की सेवा ही ईश्वर की सेवा है !
डॉ प्रभाकर कुमार
यह लेखक के अपने विचार हैं।