जावेद अख्तर की रिपोर्ट
हनवारा: गोड्डा जिले के महागामा अनुमंडल क्षेत्र में दो ऐसे सड़क विहीन गांव हैं जिन्हें अबतक पक्की सड़क (नसीब) मुयस्सर नहीं हुई हैं,जी हाँ आपने सही सुना आपको जानकर हैरत होगी कि आजादी के 75 साल के बाद भी ग्रामीणों को पैदल चलने लायक सड़क मार्ग नसीब नहीं होना स्वतंत्र भारत में दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में चुनाव के समय सांसद, विधायक, जिला पंचायत, जनपद पंचायत ,ग्राम पंचायत के सशक्त उम्मीदवार वोट मांगने के लिए गांव -गाँव में जाकर के लंबी-लंबी भाषण एवं चुनावी वादे करते हुए चुनाव में जीतने के बाद आपके गांव में सड़क,पानी, बिजली सहित तमाम सुविधाएं दिलाने के लिए कृत संकल्पित रहूंगा। ऐसा कहने वाले जनप्रतिनिधियों का चुनावी वादे 5 साल बीतने के बाद भी जस के तस रहते हुए गांव में चलने लायक भी कच्ची सड़क नहीं बना पाते जिसके कारण ग्रामीणों को भयंकर तकलीफ उठानी पड़ती है। जिसके लिए लोकलुभावन वादे करने वाले जनप्रतिनिधियों सहित जिम्मेदार अफसरों को कोई सरोकार नहीं होता। जिसका दंश झेलने को आज भी ग्रामीण अंचलों के रहवासी मजबूर और बेबस हैं।
ऐसा ही कलेजे को झकझोर देने वाली मामला गोड्डा जिले में महागामा से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा हनवारा क्षेत्र के ग्राम घुठियानी पंचायत खोरद एवं परसा पंचायत के ग्राम विक्रमपुर जो बिहार सीमा के करीब बसा हुआ है।
जहाँ चलने लायक भी सड़क नहीं होने से 108 एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंचने के कारण अबतक कई लोगों की मौत हो गई हैं।
ग्रामीणों के अनुसार तमाम जनप्रतिनिधियों सहित विभाग के आला अफसरों से गांव तक पहुंचने के लिए कच्ची सड़क निर्माण के लिए कई बार मांग करने के बाद भी आज तक चलने लायक भी सड़क नहीं बना पाने के कारण हमारे गांव से कई लोगों का मौत हो गई हैं ।
जान हथेली में लेकर बरसात के दिनों में भी 108 एम्बुलेंस को फोन करने पर आधा दूरी में पहुंच तो जाते हैं। लेकिन उ पक्की सड़क नहीं होने के कारण गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। जिसके कारण आपातकालीन प्रसव किसी तरह गांव में ही कराना पड़ता है। गांव में सुविधा युक्त प्रसव के साथ ही स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में मासूम बच्चों को जान गंवानी पड़ती है। जो ग्राम वासियों को झकझोर कर रख दिया है। विक्रमपुर गाँव में सड़क के अभाव में तलाब के मेड पार से बरसात के दिनों में बड़ी मुश्किलों से जान जोखिम में डालकर आवाजाही करना ग्रामीणों की मजबूरी बन गई है। महिलाओं ने बताया कि सरकार कह रही है घर में प्रसव न कराकर प्रसूता महिला को अस्पताल ले जाएं।लेकिन गांव तक सड़क नहीं होने से 108 व जननी वाहन नहीं पहुंचने से अस्पताल तक समय पर पहुंचना संभव नहीं हो पाता जिसके कारण साल में कई मासूम बच्चों समेत लोगों ने जान गवाए हैं। जिसका जिम्मेदार कौन होगा,,, आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है। जिसके कारण ग्रामीणों में आक्रोश पनप रहा है।