विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
बरही से बिपिन बिहारी पाण्डेय
बरही (हजारीबाग): बदलते युग में तकनीक की घुसपैठ के कारण किताबों के पठन में भारी गिरावट देखने को मिली है। अधिकतर युवा अब फेसबुक, वॉट्सएप तथा इंटरनेट पर अपना समय गुजारना पसंद करते हैं। किताबें अब केवल ड्राइंग रूम में सजावट का सामान बनकर रह गई हैं। किताबों के प्रति तेज गति से हो रहा मोहभंग चिंताजनक है। उक्त बातें राष्ट्रीय यादव सेना के महामंत्री सह समाजसेवी संजय यादव ने विश्व पुस्तक दिवस पर कहीं। उन्होंने कहा कि आज के समय एक सर्वे के अनुसार करीब 94 फीसदी लोगों के पास मोबाइल और करीब 74 के पास टेलीविजन हैं। लेकिन किताबें और मैगजीन के मामले में यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है। केवल 10 फीसदी लोगों के घरों में ही किताबें और मैगजीन मिली हैं। लोग इंटरनेट पर ज्यादा समय बिता रहे हैं और किताबों में कम।इंटरनेट की लत से कई तरह की क्षमता प्रभावित होती है। जैसे, उत्तेजना नियंत्रण, भविष्य की योजना और शैक्षिक वातावरण में बेहतर तालमेल नहीं बना पाना आदि। इसलिए इंटरनेट की लत से प्रभावित छात्रों को पढ़ाई में ज्यादा मुश्किल नजर आई जबकि ऐसे छात्र जो इंटरनेट से दूर रहे वे ज्यादा सफल रहे।निःसंदेह किताबों को लेकर यह हताशा का माहौल हमारे पिछड़ जाने का संकेत है। किताबों से दिनोंदिन बढ़ती दूरी हमें नैतिक पतन, भौतिकवाद एवं आत्ममुग्ध आधुनिकता से ग्रस्त कर रही है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं साहित्यिक जैसे तमाम क्षेत्रों का ज्ञान हमें किताबों से ही मिलता है। किताबें सोच बनाने व बदलने का माद्दा रखती है। किताबें हमें अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों काल की जानकारी देती है। किताबें मनुष्य की सच्ची मित्र हैं जो प्रत्येक परिस्थिति में बखूबी साथ निभाती है। एक अच्छी किताब हमें सफलता के शिखर तक पहुंचा सकती है।