खूंटी: मारंग गोमके जयपाल सिंह मुण्डा के गांव टकरा में झारखण्ड आदिवासी महासभा ने तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन का विषय है स्वशासन, लोकतंत्र और वर्त्तमान चुनौतियां – आगे का संघर्ष।
कार्यक्रम में कई नामचीन सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। सम्मेलन में राजस्थान से आयी सामाजिक कार्यकर्त्ता ने कहा कि वर्त्तमान में केंद्र सरकार कॉरपोरेट घरानों के साथ है। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में गरीबो, आदिवासियों की आवाजें दबाई जा रही हैं। लंबे समय से चल रहे किसानों के धरना प्रदर्शन का केंद्र सरकार पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों को सरकार तक पहुंचाना भी वर्त्तमान सरकार में अपराध माना जाने लगा है।
सम्मेलन में उपस्थित अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि सम्मेलन में न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की भी बातें हुई हैं। टकरा गांव में सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के उदाहरण स्पष्ट तौर पर देखने को मिलेंगे। यहां का सामाजिक आर्थिक ताना बाना गांव समाज के इर्द गिर्द घूमता है। यहां गांव की जमीन में गांव के लोग ही खेती बारी करते हैं। खेती किसानी से ही आर्थिक विकास की राह तय की जाती है। गांव समाज की सामाजिक आर्थिक विकास स्थानीय लोग ही तय करते हैं।
अन्य राज्यों से आये सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने कहा कि जब कभी स्वशासन और अपने अधिकारों को लेकर शोषित, दलित और आदिवासी समाज उठ खड़ा होता है उसे वर्त्तमान केंद्र सरकार हाशिये पर धकेलने का काम करती है। वर्त्तमान केंद्र सरकार तानाशाही रवैया अपनाते हुए कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से राजनीतिक नीति निर्धारण का कार्य करती है। किसानों की आवाजें जबरन दबायी जा रही हैं। बंदूक की ताकत से तानाशाही केंद्र सरकार लोकतंत्र की आवाज को कुचलना चाहती है।
वर्त्तमान केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये से दलित, शोषित और आदिवासी समुदाय डरा सहमा है। अपने हक अधिकारों की बात लोकतांत्रिक तरीके से करने वालों को जबरन डराया धमकाया जाता है। केंद्र की वर्त्तमान सरकार कॉर्पोरेट हिन्दू राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर है। देश में जबरन धार्मिक उन्माद और वैमनस्य फैलाने की कोशिश की जा रही है। देश की लोकतंत्रिक शासन व्यवस्था में सामाजिक सौहार्द्र को कुंद करने की प्रक्रिया व्यापक पैमाने पर कॉर्पोरेट घरानों के साथ मिलकर की जा रही है। देश में संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक अधिकारों पर लगातार हमले किये जा रहे हैं। राज्य में जन-अधिकारों की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए तीन दिनों तक मारंग गोमके के गांव में झारखण्ड जनाधिकार महासभा द्वारा आयोजित सम्मेलन गरीब, दलित और शोषित पीड़ित आदिवासी समुदाय के लिए संघर्ष की नई राह तलाशेगी।