पांकी से लौकेश सिंह की रिपोर्ट
पांकी: पांकी प्रखंड के कोनवाई, हरना,बनखेता, बान्दुबार,हरिओमनगर, चंद्रपुर, बुढ़ाबार,चौफाल,बहुवारा,तेतराई, डंडार समेत प्रखंड में लगभग सभी जगह मनाए जा रहे कर्मा पूजा हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ।अर्थात करमा पर्व का समापन शनिवार को हो गया।मालूम हो कि व्रती बहनें अपने भाई के स्वस्थ्य सुखी संपन्न और भाई पर किसी प्रकार का संकट नहीं आये के लिए व्रत रखी।यह पर्व रक्षा बंधन का ही का रूप है। सात दिन पहले डालियाँ मे मटर, चना, जो, तिल डाला गया था वह आज बड़ी होकर लहरा रही है। व्रती बहनें कहती है कि इस डालियाँ का कुछ अलग ही महिमा हैऔर इस बात का पता इस बात का सच्चाई उगे हुए पौधों कि लंबाई से देख सकते हैं।अंतिम दिन में व्रती करमा डाली लाकर गाड़ती है और डाली के चारों ओर सुंदर रंगोली बनाती है और डालियाँ को बीच में रखती है। बहने एक दूसरे के हाथ मे हाथ डालकर करमा डाली के चारों ओर घूम घूम कर नाचती है। मान्यता है कि कर्मा और धर्मा नामक दो भाइयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए जान को दांव पर लगा दिया था। दोनों भाई गरीब थे और उनकी बहन भगवान से हमेशा सुख-समृद्धि की कामना करते हुए तप करती थी।बहन के तप के बल पर ही दोनों भाइयों के घर में सुख-समृद्धि आई थी। इस एहसान के फलस्वरूप दोनों भाइयों ने दुश्मनों से बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दिया था। तब से इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई।इसके अलावा इस पर्व से जुड़ी एक और कहानी है। एक बार कर्मा परदेस गया और वहीं जाकर व्यापार में रम गया।बहुत दिनों बाद जब वह घर लौटा तो उसने देखा कि उसका छोटा भाई धर्मा करमडाली की पूजा में लीन है। धर्मा ने बड़े भाई के लौटने पर कोई खुशी नहीं जताई और पूजा में ही लीन रहा। इस पर कर्मा गुस्सा गया और पूजा के सामान को फेंककर झगड़ा करने लगा। धर्मा चुपचाप सहता रहा।वक्त के साथ कर्मा की सुख-समृद्धि खत्म हो गई।आखिरकार धर्मा को दया आ गई और उसने अपनी बहन के साथ देवता से प्रार्थना की कि भाई को क्षमा कर दिया जाए। एक रात कर्मा को देवता ने स्वप्न में करमडाली की पूजा करने को कहा। कर्मा ने वहीं किया और सुख-समृद्धि लौट आई।इसलिए करमा मनाई जाती हैं।