रांची : ब्लैक फंगस से पीड़ितों के इलाज से जुड़ी जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से उपस्थित महाधिवक्ता राजीव रंजन ने खंडपीठ को बताया कि ब्लैक फंगस से निपटने के लिये राज्य सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं.
सरकार के स्तर से उन सभी दवाईयों को मरीजों को निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है, जिसकी उन्हें जरूरत है. महाधिवक्ता का पक्ष सुनने के बाद चलती सुनवाई के दौरान रिम्स निदेशक को भी कोर्ट ने तलब किया.
अदालत ने रिम्स निदेशक से पूछा कि ब्लैक फंगस की बीमारी से इलाजरत जिस महिला के मामले में कोर्ट ने निर्देश दिया था, उसका क्या हुआ? रिम्स निदेशक ने कोर्ट को बताया कि सर्जरी के बाद उस महिला की मृत्यु हो गयी. जिसपर अदालत ने पूछा कि वह महिला कब भर्ती हुई थी? रिम्स निदेशक ने बताया कि लगभग 1 माह पूर्व वह महिला रिम्स आयी थी. रिम्स निदेशक का जवाब सुनकर अदालत ने कहा कि सर्जरी में इतनी देर क्यों हुई ? कोर्ट ने कहा कि कोरोना में डॉक्टरों ने काफी अच्छा काम किया. लेकिन इस मामले में मरीज की अनदेखी की गई, हर जान कीमती होती है. हम इस मामले की जांच चाहते हैं. सच क्या है यह पता कीजिये. कोर्ट ने रिम्स निदेशक से इनटर्नल जांच रिपोर्ट एफिडेविट के माध्यम से मांगी. जस्टिस डॉ रविरंजन ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि डॉक्टर मरीजों को सब्ज़ियों की तरह देख रहे हैं. मरीज के परिजन अस्पताल में अपने मरीज के स्वास्थ्य ठीक होने का इंतजार करते हैं और उन्हें प्लास्टिक बैग में लपेटकर उनके परिजन का शव दे दिया जाता है. अस्पताल पैसा बनाने की मशीन बन चुके हैं.अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा परिजनों को यह नहीं बताया जाता कि उनके मरीज को क्या दवा दी जा रही है,कैसा इलाज चल रहा है, यह नहीं होना चाहिए. मरीज अंततः परिजनों की सम्पति है.