विकास के कार्यों में कमीशन खोरी एवं भ्रष्टाचार है व्याप्त
बसंत कुमार गुप्ता
गुमला। आजादी के 75 साल गुजर जाने के बाद भी आदिवासी बहुल गुमला जिले के विकास में कमीशन खोरी एवं भ्रष्टाचार चरम सीमा पर देखने को मिल रहा है। ऐसे तो झारखंड राज्य गठन के बाद पंचायती राज के दो बार चुनाव हुए। लेकिन विकास के कार्यों में चल रहा गड़बड़झाला का खेल अभी जारी है विकास के कार्यों में कमीशन खोरी देखने को मिल रहा है। भ्रष्टाचार के मामले में पंचायती राज चुनाव के दूसरे कार्यकाल में गुमला प्रखंड क्षेत्र में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले सामने आए ।परिणाम यह है कि पंचायत से चुनाव जीत कर आए जनप्रतिनिधि मुखिया सबको प्रशासन को निलंबित करना पड़ा। जिसके तहत गुमला प्रखंड में टोटो, डुमरडीह, घटगांव एवं तेल गांव पंचायत के मुखिया को निलंबित कर दिया गया। गौरतलब है कि पंचायत स्तर पर गांव के विकास को लेकर कई योजनाएं संचालित की जा रही है। लेकिन जनप्रतिनिधियों के लालफीताशाही कारनामों के कारण विकास योजनाओं का शत प्रतिशत लाभ आमजन को नहीं मिल पा रहा है ।सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले शौचालय निर्माण के कार्य तथा पेयजल पानी टंकी निर्माण में गड़बड़ी को लेकर लोगों की आवाजें बुलंद होती रही हैं। ऐसा नहीं है कि गुमला प्रखंड में सिर्फ भ्रष्टाचार के मामलाआये। गुमला जिले के सिसई प्रखंड क्षेत्र में भी सोलर लाइट तथा पेयजल टंकी निर्माण के कार्य में गड़बड़ी की शिकायतें और जांच-पड़ताल का खेल चलता रहा। सोलर लाइट एवं पानी टंकी से निर्माण में बाजार से ऊंचे मूल्य पर सामानों की खरीदी कर सरकारी राशि की बंदरबांट होती रही। योजनाओं के क्रियान्वयन एवं देखभाल के नाम पर शिकायतें होने पर जांच पड़ताल का खेल चलता रहा लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही देखने को मिली। यही हाल गुमला जिले के रायडीह डुमरी चैनपुर जारी घाघरा बिशुनपुर पालकोट बसिया कामडारा भरनो प्रखंड क्षेत्र के विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में भी गड़बड़ी की शिकायतें मीडिया की सुर्खियां बनती रही। गौरतलब है कि आदिवासी बहुल गुमला जिला कृषि प्रधान क्षेत्र है लेकिन सिंचाई संसाधनों के अभाव में लोगों का पलायन बदस्तूर हर साल जारी ही रहा है।पलायन को रोक पाने में राज्य की सरकार तथा जिला प्रशासन असफल रही है। ऐसे तो अकुशल मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने के लिए मनरेगा कानून लागू की गई है। लेकिन समय से काम नहीं मिलने तथा काम के बाद पारिश्रमिक का भुगतान समय से नहीं होने के कारण मनरेगा कानून के प्रति लोगों का मोहभंग होता जा रहा है। गुमला जिले के घाघरा और बिशुनपुर प्रखंड क्षेत्र में बॉक्साइट की प्रचुरता है लेकिन सरकार प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों के उदासीन रवैया के कारण बॉक्साइट आधारित कल कारखाना आदि की स्थापना भी नहीं की जा सकती है। जिले के कई ऐसे सुदूरवर्ती गांव है जहां तक पहुंच पथ सड़क का निर्माण भी नहीं किया जा सका है।