खूंटी : खूंटी जिले का शिक्षा विभाग बना घोर लापरवाह, बता दें कि जिले में एक सौ अठारह सरकारी विद्यालयों के विलय की प्रक्रिया तीन साल पूर्व मार्च 2018 में की गई थी। विलय के बाद कई विद्यालय तो बन्द हो गए लेकिन शिक्षकों का पदस्थापना अब भी लंबित है। खूंटी जिले के बन्द पड़े विद्यालयों के शिक्षक अब भी बन्द विद्यालय के नाम पर ही वेतन ले रहे हैं। ऐसा इसलिए कि डीईओ ने शिक्षकों के पदास्थापन का कार्य लंबित रखा है।
जानकारी के अनुसार राज्य के अन्य सभी जिलों के सरकारी विद्यालयों के विलय की प्रक्रिया के साथ ही शिक्षकों के पदस्थापन की प्रक्रिया पूर्ण की गई। अब सवाल यह उठता है कि खुंटी में विद्यालयों के मर्ज की प्रक्रिया के साथ ही आखिर शिक्षकों के पदास्थापन को लंबे समय तक रोककर रखना कहीं न कहीं खूंटी के शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही को दर्शाता है।
इस मसले पर जब शिक्षकों से पूरा माजरा जानने की कोशिश की गई तो शिक्षक भी दबी जुबान कहने लगे कि हमारे विद्यालय को तो दूसरे विद्यालय में ऑनलाइन प्रक्रिया से मर्ज कर दिया गया लेकिन हमलोग आज भी शिक्षा विभाग की दस्तावेजों के मुताबिक उसी बन्द पड़े विद्यालय के शिक्षक हैं। इसी कारण विद्यालय संचालन के लिए सरकार से मिलने वाली विद्यालय विकास एवं मेन्टेनेन्स की राशि भी नहीं दी जाती है। जिसके भुक्तभोगी न सिर्फ शिक्षक बल्कि विद्यार्थी भी हो रहे हैं। इसके कई उदाहरण हैं राजकीय प्राथमिक विद्यालय तिरला, जिसे आदर्श हिंदी मध्य विद्यालय खूंटी में ऑनलाइन मर्ज किया गया। अब आदर्श हिंदी मध्य विद्यालय खूंटी में विद्यार्थियों की संख्या में दुगुनी वृद्धि हुई, लेकिन विद्यार्थियों के विकास से संबंधित विकास मद की राशि किस विद्यालय को पहुंच रही है यह जानकारी किसी के पास नहीं है। संख्याबल में बढ़ोतरी के बावजूद आज भी आदर्श हिंदी मध्य विद्यालय खूंटी में शौचालय की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई, मध्याह्न भोजन बनाने का कमरा भी जर्जर अवस्था मे है। पेयजल की समुचित व्यवस्था का भी अभाव है। डेस्क बेंच की बात करें तो आप विद्यालय के प्रत्येक क्लासरूम में अध्ययनरत विद्यार्थियों के बैठने की फिजिकल वेरिफिकेशन से अंदाजा लगा लेंगे कि कैसे कोविड-19 की सरकारी गाइड का पालन कराया जा सकेगा। उसी तरह कन्या मध्य विद्यालय खूंटी में मर्ज के बावजूद एक भी मूल शिक्षक नहीं हैं। अन्य विद्यालयों से आये शिक्षक ही किसी तरह अपनी ड्यूटी कर रहे हैं।
बहरहाल वर्तमान समय मे स्कूलों में विद्यार्थियों के फिजिकल वेरिफिकेशन का काम संभव नहीं है लेकिन आप इससे यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विद्यालयों के मर्ज के बावजूद अन्य सारी सुविधाएं, विकास मद, मेन्टेनेन्स और शिक्षकों का पदस्थापन लंबे समय से लंबित होने के पीछे शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही साफ झलकने लगी है। जिले के सभी मर्ज विद्यालयों की लगभग यही कहानी है।
खूंटी में विद्यालय विलय की प्रक्रिया मार्च 2018 में की गयी थी। जिले में लगभग 118 सरकारी विद्यालय अन्य समीप के विद्यालयों में विलय किये गए हैं। जिले में सबसे ज्यादा 41 विद्यालय अड़की प्रखण्ड के हैं, कर्रा प्रखण्ड के 24, खूंटी प्रखण्ड के 22, मुरहु प्रखण्ड के 15, रनियां प्रखण्ड के 9 और तोरपा प्रखण्ड के 7 विद्यालय शामिल हैं। शिक्षकों की बात करे तो लगभग दो सौ से ज्यादा शिक्षक शिक्षिकाएं अब भी पदस्थापन के इंतजार में हैं। शिक्षक अब भी अपने पुराने बन्द पड़े विद्यालय के शिक्षक ही कहलाने को मजबूर हैं।
बता दें कि खूंटी जिले के विद्यालय विलय प्रकरण की जिला स्तरीय शिक्षा समिति के कई माननीय सदस्य भी है लेकिन अब तक किसी माननीय ने शिक्षकों के पदस्थापन को लेकर कोई सवाल जवाब नहीं किये है। जिले के उपायुक्त, खूंटी लोकसभा के सांसद, उपविकास आयुक्त, जिला शिक्षा पदाधिकारी, एसडीओ और जिला शिक्षा अधीक्षक शामिल है। खूंटी, तोरपा और तमाड़ विधानसभा के विधायकों ने भी इस मसले पर अबतक चुप्पी साध रखी है। जानकारी के अनुसार राज्य के अन्य जिलों में विद्यालयों के विलय की प्रक्रिया के तुरंत बाद शिक्षकों के पदस्थापन की प्रक्रिया पूरी कर ली गयी।
खूंटी जिला का शिक्षा विभाग पूर्व से ही कई मामलों में सुर्खियों में रहा है चाहे शिक्षकों के लंबित वेतन भुगतान का मामला हो, ट्रांसफर पोस्टिंग का मामला हो या पेंशन का मामला खूंटी जिला इन सभी मामलों में लीक से हटकर काम करने में गिना जाता है। टेबल के ऊपर से जितने कार्य दृष्टिगोचर होते हैं उससे कहीं ज्यादा टेबल के नीचे से शिक्षा विभाग के काम किये नहीं जाते फ़रियाये जाते हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकारी विद्यालयों के मर्ज की प्रक्रिया जितनी तेजी से की गई उतनी तेजी से शिक्षकों के पदस्थापन की प्रक्रिया आखिर शिक्षा विभाग के टेबल के ऊपर से होगी या अब भी इंतजार है टेबल के नीचे से पदस्थापन की प्रक्रिया पूरी कर दी जाय।
ये भी बताते चले कि डीएसई के खिलाफ पूर्व से ही शिक्षक रिश्वतखोरी का आरोप लगाते रहे है। शिक्षकों के शिकायत पर जांच हुई और डीएसई का पावर सीज कर शिक्षकों का वेतन भुगतान करने का आदेश दिया गया था। दबी जुबान शिक्षक बताते है कि पदस्थापना इसलिए भी नही किया गया क्योंकि उन्हें शिक्षकों से मोटी रकम रिश्वत के तौर पर वसूलना था।
सवाल छोटा जरूर है लेकिन इससे न केवल शिक्षकों के पदस्थापन का मसला सुलझेगा बल्कि विद्यार्थियों का आनेवाला भविष्य भी संवरेगा।