खूंटी: जल ही जीवन है, जल बिना जग सूना। जल की महत्ता को समझते हुए विश्व जल दिवस के मौके पर खूंटी जिला में एक साथ साढ़े आठ सौ लोगों ने श्रमदान से 26 माइक्रो बोरीबांध बनाकर जल संरक्षण की दिशा में इतिहास रचने का काम किया है।
खूंटी जिला प्रशासन, सेवा वेलफेयर सोसाइटी और ग्रामसभा के संयुक्त प्रयास और पारंपरिक मदइत अर्थात श्रमदान से जिले के अलग अलग प्रखंडों के छोटे छोटे नदी नालों में पूरी तैयारी के साथ माइक्रो बांध बनाये गए।
1992 से पूरे विश्व मे जलसंकट से निजात पाने की दिशा में एक सार्थक पहल के बतौर विश्व जल दिवस मनाया जाने लगा। लगातार भूगर्भीय जलस्तर के संकट और परिस्थितिकीय संकट ने जल संरक्षण के प्रति पूरी दुनिया को सजग किया है। जिन विकसित देशों में तालाबों और डैमों को भरकर बड़े बड़े कॉन्क्रीट बहुमंजिला इमारत बनाए गए थे अब वहां की सरकारें और पर्यावरण संरक्षण के हितैषी पुनः तालाब और डैम को आकार देने में जुटे हैं। विकासशील देशों में भी अब जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
झारखण्ड के खूंटी जैसे छोटे और नक्सलप्रभावित इलाके में भी विगत 2 वर्षों से 200 से ज्यादा बोरी बांध ग्रामसभा के सहयोग से बनाए गए हैं।
जिला प्रशासन, सेवा वेलफेयर सोसाईटी और क्षेत्र के ग्रामसभाओं के द्वारा संयुक्त प्रयास से एक ही दिन में जिले के अलग-अलग गांवों में 800 से ज्यादा ग्रामीणों, डीसी, एसपी समेत पुलिसकर्मियों ने श्रमदान कर 26 बोरीबांध बनाने का काम किया है। जल संरक्षण की दिशा में इसे एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। जल दिवस के अवसर पर मुख्य कार्यक्रम कर्रा प्रखंड के लिमड़ा गांव में आयोजित की गई। इस पंचायत में जल महापर्व मनाया गया। जिसमें डीसी शशि रंजन, एसपी आशुतोष शेखर, जिला कृषि पदाधिकारी कालीपद महतो, कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा शामिल हुए। लिमड़ा गांव में लगभग 400 ग्रामीण महिला-पुरूषों ने श्रमदान कर 10 बोरीबांध बना डाला।
जल महापर्व के अवसर पर आयोजित सामारोह में बोलते हुए डीसी शशि रंजन ने कहा कि पानी के प्रति हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है। गांव में हमें पानी का बजट बनाना होगा। हमें पीने और सिंचाई के लिए और भूगर्भिय जलस्तर को बेहतर बनाने के लिए कितने पानी की आवश्यकता होगी। इसपर सोचना होगा। उन्होंने कहा कि खूंटी में बारिश कम नहीं होती है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण पानी बहकर निकल जाता है। हमें बहते पानी की गति को कम कर उसे गांव के नालों में सीरियल बोरीबांध बनाकर रोकना है। ऐसा करके हम जल संकट की समस्या से उबर सकते हैं। डीसी ने लिमड़ा गांव के लोगों के द्वारा सामूहिक रूप से श्रमदान कर बोरीबांध बनाये जाने पर उन्हें बधाई दी। उन्होंने बोरीबांध के साथ गांव में मनरेगा के तहत टीसीबी, पौधारोपण और तालाब बनाने पर भी बल दिया। डीसी ने लोगों को सचेत करते हुए कहा कि अगर जल संरक्षण को लेकर हम चिंता नहीं करते हैं, तो आने वाले दिनों में हमें भीषण जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
एसपी आशुतोष शेखर ने कहा कि सेवा वेलफेयर सोसाईटी और ग्रामसभाओं के द्वारा किये जा रहे कार्य नि:संदेह काफी सराहनीय है। उन्होंने कहा कि लिमड़ा गांव में जिस तरह से गांव के नाले को सिरियल बोरीबांध बनाकर जिंदा करने का प्रयास किया गया है, वह अपने आप में गांव की एक बड़ी उपलब्धि है। एसपी ने कहा कि हमें जल और हवा के संरक्षण को लेकर जागरूक होना होगा। उन्होंने कहा कि समाज और देश में बदलाव के लिए लिमड़ा पंचायत के लोगों कीर तरह ही सामुदायिक रूप से काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि गांव के लोग स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल कर आगे बढ़ें, प्रशासन हर पल मदद को तत्पर है।
खूंटी के अलग-अलग गांवों में कुल 26 बोरीबांध का निर्माण किया गया। जिसमें 800 ग्रामीण महिला-पुरूषों ने और 50 पुलिसकर्मियों ने श्रमदान किया। लिमड़ा, सुरूंदा, सरजोमा, गजगांव, कोलोम्दा, पुलिस लाईन के पास, चीरूहातु और पेलौल में बोरीबांधों का निर्माण हुआ।
26 बोरीबांधों के निर्माण में जिन लोगों ने अग्रणी भूमिका निभाई उनमें लिमड़ा की मुखिया लक्ष्मी देवी, गणेश कच्छप, सुरेंद्र गोप, शिबू उरांव, लखीराम बड़ाईक, सुनी खान, मंसूर आलम, कंचन उरांव, नंदू उरांव, जोगिया पाहन, गजगांव में मुखिया विलशन पुर्ती, सरजमा में सुरजू टुटी, मोसो मुंडा, मंदरू मुंडा, चाड़ा पुर्ती, बिरसकेतु मुंडा, बहादूर मुंडा, अन्या गोस्वामी, सुरूंदा में सवना मुंडू, जोहन मुंडू, अब्रहाम पाहन, करम मुंडू, पौलुस मुंडू, डीबर मुंडा, संतोष मुंडू समेत ग्रामसभाओं के सैकड़ों सदस्य शामिल थे।