सोसाइटी
लेखक: तंजीला नाज़
अजीब सा खालीपन था मेरे दिमाग में मेरे जेहन में जो इतनी उलझनों के बाद भी एक ही सवाल किए जा रहा था कि आज इतना खालीपन क्यूं महसूस हो रहा है। सामने बैठे किसी अपने को देख कर भी यही महसूस कर रही थी ना जाने मै कौन सी दुनिया में गुम थी । मुझे ये भी लग रहा था इस वक़्त कोई अपनों जैसा मेरे अपने जो मेरे सामने थे फिर भी एक लफ्ज़ कहने की उन से या खुद से नजरें मिला कर कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी सच इतनी अजीब इतना खालीपन क्यूं था मै समझ ही नहीं पा रही थी ।
सच तो ये है कि मुझे अपने या अपनेपन से ये कभी महसूस ही नहीं हुआ कि कौन अपना है या प्राया या मै भी किसी की अपनी हूं या फिर गैर की मेरे सोच में फकत एक बात रहती है जो जिसका हक हो उसे देते चलो यही वसूल है और मैंने भी अपना यही वसूल बना लिया था। हां बेशक मुझे कभी अपनों को याद आती है और कभी अपनों का साथ रहना चलना उनके नखरे झेलना उनकी कुछ बेतुकी बातें और कुछ दिल को छू जाने वाली हरकतें सब नजर के सामने होते है लेकिन क्या करें ना चाहते हुए भी उन चीजों को हम पीछे छोड़ देते है और अपनी एक अलग दुनिया में कदम जमा देते है। जब हम किसी दिन किसी बख़्त को इतना याद क्यूं कर रहे होते है ,जबकि दिल में तो हमेशा किसी ना किसी बात की उलझन भरी पड़ी होती है ।फिर भी मै इस खालीपन को समेटने की कोशिश करती हूं कि जो ये खलीपन है इसे कैसे दूर किया जाए भले ही शायद किसी को लगता हो की किसी से मिलने से जो हमारा दिल है और उसका का सूनापन ख़त्म हो जाएगा या कोई मेरी इस खालीपन को दूर करें तो मुझे लगता है ऐसा मुमकिन नहीं होता है ।जो एक बार महसूस कर लिया जाए जिसके बारे में एक बार सोच लिया जाय वो कहां दिल दिमाग से गुम होते है।मुझे तो एक बात समझ में आजतक नहीं अाई की ये जिंदगी मुझसे क्या चाहती है उसे समझते समझाते शायद उम्र ही ख़त्म हो जाए या हमारी सांसे रुक जाए लेकिन समझ नहीं पाऊंगी ना कोई इस बात को समझा सकते है जिंदगी का फलसफा और फासले दोनों ही अजीब होते है दोनों का अपना एक अलग रुतबा होता है उसे समझे या समझाएं कोई फर्क नहीं पड़ता है। बस जंहा में चलने का नाम है चल रही हूं । उसी का गुणगान कर रही हूं यही मेरे लिए काफी है। बाकी सबकी अपनी मर्जी है अपना नजरिया है जिसे जो सही और उचित लगता है करते जाते है।आज बस अपने याद में से एक याद जो खालीपन से भरा पड़ा है जिसे काफी बार भरने की कोशिश की लेकिन भर नहीं पाई इस आग में जलती रही जिसमें कभी हमने तबक्को ही नहीं की थी खैर देखते दिखाते हैं कहां से कहां निकल गए जहां से लौटना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन था लेगों ने जो भी सोच रखी है या सोच रहे होते है उनका तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया उनकी इन रहनुमाई के लिए ।सबकी अपनी जिंदगी है सबका अपना मिजाज है। मै यही कहूंगी सब को अपने हिसाब से जिंदगी जीने का अधिकार है।और जीते हैं।फिर से यही कहूंगी दिल में एक अजीब खालीपन था जो कभी भर नहीं सकता ।।।।।