राम विश्व में मर्यादा ,प्रज्ञा सामाजिक संरचना ,परिवार और परिवार के दायित्व, तपस्या,धैर्य, सहिष्णुता , समर्पण ,त्याग और प्रेम का प्रयाग हैं ।
राम संवैधानिक नैतिकता के शलाका पुरुष हैं। संविधान की मूल प्रति में जिन बातों को लिया गया है वे भी धर्म एवं संस्कृति के ही प्रतिबिंब हैं। भारतीय संविधान के नागरिकता वाले द्वितीय भाग में वैदिक गुरुकुल के उपनिषद पाठ एवं हवन के सांकेतिक चित्र हैं।
मौलिक अधिकार वाले तीसरे भाग में सीता, राम एवं लक्ष्मण के चित्र के साथ साथ भगवान शंकर ,कृष्ण और बुद्ध महावीर के भी चित्र हैं। नीति निर्देशक वाले भाग चार में द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश से संबंधित चित्र हैं। ये चित्र लोक कल्याण के लिए व्यक्ति के कर्तव्य को बताते हैं।संविधान में समाविष्ट यह चित्र भारतीय संस्कृति, इतिहास और गौरवशाली परंपरा की व्यापकता रेखांकित करते हैं।
संविधान में मनीषियों ने राम ,लक्ष्मण एवं सीता का चित्र लगाकर रामराज्य की परिकल्पना की थी जिसमें मानव कल्याण इसके निहितार्थ थे और यह तभी आएगा जब नागरिकों को विधि के सामने समता का अधिकार प्राप्त हो।जाति ,मजहब ,लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो । सबको समान अवसर एवं स्वतंत्रता मिले और समग्र विकास की धारा अवगाहित हो। सर्वत्र कल्याण और संतुष्टि का वातावरण हो।
भारत की प्राचीन राजनिति का आधार भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक चिंतन रहा है। हमारा संविधान हमारी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। कुछ कम्युनिस्ट विचारकों ने धर्म को मजहब के समानार्थी मानने की भूल करते हुए सनातन धर्म के शाश्वत मानव मूल्यों को संकीर्ण दृष्टि से समझने का जो कार्य किया, उसे मिटाते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने भारतीय जीवन-पद्धति को धर्म का मूल मानते हुए राष्ट्र के कल्याण के लिए उनका सूत्र वाक्य में प्रयोग किया और धर्म शब्द की वास्तविक व्याख्या की एवं उसके स्वरूप को भी स्पष्ट किया।
भारतीय संविधान की मूल हस्तलिखित प्रति संसद भवन की लाइब्रेरी में हिलियम वाले बक्से में सुरक्षित रखी गई है। संविधान की जो प्रति बाजारों में उपलब्ध है उसमें यह सांकेतिक चित्र नहीं हैं। सेक्युलरिज्म एवं वोट बैंक की संकीर्ण मानसिकता के कारण संविधान की मौलिक अवधारणा एवं सांस्कृतिक वैभव से हमारे भविष्य पीढ़ियों को वंचित रखने का यह कुचक्र है।
जीवन के हर क्षेत्र में मर्यादा, अनुशासन और अपनी लक्ष्मण रेखा का पालन न रखने की सीख हमें प्रभु श्रीराम के जीवन से मिलती है ! हमें इसे कभी भी संप्रदायिकता के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। हमने भी सामाजिकता की मजबूत मिसाल अपने बचपन के विद्यार्थी जीवन दिनों में देखी है जो आज विलुप्ति के कगार में है! ज्ञात हो इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देश में भी राम को अराध्य समझा जाता है!
श्रीराम को राम के रूप में समझना पड़ेगा! राम का व्यक्तित्व ,अनुशासन ,त्याग, तपश्चर्या, धैर्य ,विनय सबकुछ अद्भुत एवं विलक्षण है! जाति संप्रदाय से परे हैं हम सबके राम! राम के आदर्श को समझने की जरूरत है! राम केवल एक ऐतिहासिक पौराणिक पात्र नहीं एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति , आदर्श राजा थे। वे अद्वितीय हैं उनका धैर्य अद्भुत है ।
राम से बेहतर मैनेजमेंट ,लीडरशीप स्किल वाला संघर्षशील और सहनशील दुनियां में दुसरा कोई पात्र नहीं ! आज तक दुनिया के जितने भी मैनेजमेंट लीडर एवं मोटिवेशनल स्पीकर हुए हैं, श्रीमदभगवद्गीता एवं रामायण से ही एक्सट्रेक्ट्स लिए हैं! रामायण महाभारत श्रीमदभगवद्गीता में कोई पंथ ,सम्प्रदाय और धर्म का कोई उल्लेख नहीं! जो इसे धार्मिक पुस्तक समझते हैं हमें उनकी बुद्धि पर तरस आता है !
श्रीराम समस्त मानव जाति एवं मानवता के सर्वोच्च आदर्श हैं! मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने मानव रूप में जीवन के हर पड़ाव पर लोगों के लिए आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया । परिस्थितियां कैसी भी हो श्री राम के जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ा जा सकता है। प्रभु के जीवन और आदर्शों का प्रभाव श्री राम को मानने वाले हर व्यक्ति के व्यक्तित्व पर दिखता है। श्री राम ने मुश्किल समय में भी मर्यादा में रहते हुए और धर्म का पालन करते हुए आगे बढ़ने की सीख दी। उन्होंने दुश्मनी की वह भी मर्यादा में रहकर। रावण और बाली का वध करने के बाद भी जीवन के अंतिम क्षणों में ज्ञान देकर मुक्ति दी।
राम के बारे में मशहूर शायर इकबाल ने कहा है……….
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त ,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द ।
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़। अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द कहते हैं!
(मलक -देवता सरिश्त -उंचे सिंहासन पर विराजमान )
शम्सी मिनाई ने भी फरमाया है……..
मैं राम पर लिखूँ मेरी हिम्मत नहीं है कुछ,
तुलसी ने वाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ !
लेखक ब्रजेश पाण्डेय
अमूल्य चंद्र पांडेय का संकलन