मौजूदा समय में पीने के पानी की महत्ता बहुत अधिक है।
कहा भी जाता है जल ही जीवन है। इसी वजह से पीने का पानी देने वाली नदियों का संरक्षण और रख-रखाव मानव जाति के लिए कई अहम मुद्दों में से एक है। पारंपरिक संस्कृति में नदियों की आराधना करने का रिवाज प्राचीन काल से चला आ रहा है। मानव इतिहास भी इस बात के संकेत देता है कि सभी बड़ी सभ्यताएं नदियों के आस-पास ही पनपी और विकसित हुई है।
इसी वजह से मनुष्य और नदियों का संबंध हजारों वर्षों पुराना रहा है। और जीवनदायिनी नदियों का महत्व सदा बना रहे इसलिए इनके पूजन और संरक्षण पर जोर दिया जाता रहा है। पृथ्वी पर बढ़ते जल प्रदूषण के चलते नदियों को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी भी इसी में जुड़ी है। कई तरह के औद्योगिक कचरे से नदियों को मुक्त रखना भी उसका संरक्षण और स्वच्छ रखने की दिशा में एक कदम है।
इन दिनों चल रह रहे पारंपरिक पंचांग के ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर वर्ष गंगा दशहरे के रुप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन पवित्र गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई थीं।
इस दिन नदी में स्नान और दान का विशेष महत्व है और मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी में डुबकी लगाने से समस्त पापों का अंत और पुण्य अर्जित होता है। प्राण वायु ऑक्सीजन के बाद जल को ही जीवन बताया गया है और इस जल को अपने अंदर समाहित किए जीवनदायिनी नदियों को मां का दर्जा भी दिया गया है।
एशिया की लंबी नदियों में मानी जानी वाली गंगा नदी की लंबाई करीब ढाई हजार किलोमीटर है और ये भारत और बांग्लादेश में बहती है। बांग्लादेश में इसे पद्मा कहा जाता है। और जिन भी प्रमुख शहरों से होकर ये नदी गुजरती है वहां भी कई धार्मिक स्थल हैं। हर 12 वर्षों में लगने वाला कुंभ मेला भी प्रयागराज और हरिद्वार में इसी नदी के किनारे लगता है।
गंगा नदी में विभिन्न तरह के जीव-जंतुओं का भी निवास है जो नदी पारिस्थितिक तंत्र को सुचारु रुप से बनाकर रखते हैं। गंगा नदी के पानी को हर धार्मिक गतिविधि में भी उपयोग किया जाता है।
ज्येष्ठ माह के प्रमुख त्योहारों में गंगा दशहरा के साथ ही निर्जला एकादशी भी शामिल है।
पारंपरिक पंचांग के अनुसार हर माह के चक्र में दो बार ग्याहरवीं तिथी आती है और वर्ष में कुल 24 एकादशी पड़ती है लेकिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसे निर्जला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन बिना जल और आहार लिए उपवास और पूजन करने की परंपरा है। इस एकादशी का संदेश पानी के संरक्षण का है और पक्षी और जीव-जंतुओं को अधिक से अधिक अन्न और पानी की व्यवस्था करने से भी जुड़ा है। इस सुअवसर पर जल दान की भी प्रेरणा और शिक्षा मिलती है।
ज्येष्ठ माह अत्याधिक गर्मी के लिए जाना जाता है इसमें ज्यादा से ज्यादा जल का सदुपयोग करने का संदेश भी निहित है। ज्येष्ठ के बाद आषाढ़ माह आते ही वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है जिसमें धरती भी वर्षा के जल से संतृप्त हो जाती है।
डॉ प्रभाकर कुमार की कलम से