30 सितंबर जयंती पर विशेष
लेखक:पुष्कर महतो
झारखंड आंदोलन के महान क्रांतिकारी नेता बिशुन महतो कि आज जयंती है बिशुन महतो का जन्म 30 सितंबर 1943 ईस्वी में रांची जिला के रातू प्रखंड अंतर्गत गुडु गांव बि जुलिया में हुआ था। किसान परिवार में जन्मे बिशुन महतो कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। बचपन से ही वे आदम्य साहस का परिचय देते हुए क्रांति के पथ पर निकल पड़े थे। रांची के चुटिया धुमसा टोली स्थित धिराज महतो सीनियर ऑडिटर के घर में पढ़ाई लिखाई की। धिराज महतो वामपंथ के समर्थक थे इसलिए बिशुन महतो के जीवन पर धिराज महतो का भी प्रभाव उनके ऊपर पड़ा। धिराज महतो को बिशुन महतो मामा जी कहते थे।
बिशुन महतो समाज में व्यापक बदलाव चाहते थे । वह समाज को शोषण विहीन व उत्कृष्ट समाज का गठन चाहते थे। उनके मन में यह बात थी कि बिना शिक्षा के समाज में बदलाव संभव नहीं है इसलिए स्वयं को पढ़ लिख कर ही बदलाव लाया जा सकता है इसलिए वे सकारात्मक सोच के साथ रांची विश्वविद्यालय में स्नातक तक की पढ़ाई की और अपने ग्राम में युवाओं को भी अपनी ओर आकर्षित किए। सामाजिक सोच के साथ- साथ उनके जीवन में राजनीतिक सोच भी जागृत हुई और हटिया विधानसभा क्षेत्र में अपनी पहचान एक युवा तुर्क नेता के रूप में स्थापित किया। भा क पा माले से स्वयं को जोड़कर बिशुन महतो ने
बड़ी संख्या में महिलाएं, युवा किसान एवं अलग राज्य के समर्थक को काफी प्रभावित किया, लोगों में बदलाव के लिए एक बौद्धिक सोच विकसित की । चुटिया क्षेत्र के 1-1 महतो परिवार से व्यक्तिगत स्तर पर संबंध था। विशेषकर नीचे चुटिया में रहने वाले एच ई सी कर्मी बलदेव महतो व अरविंद महतो के परिवार से रहा।
बिशुन महतो के बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए राजनीति को अपना विरासत समझने वाले लोगों के आंखों के वह किरकिरी बन गए। एक दिन पहले से ही घात लगाए समाज के दुश्मनों ने, क्रांतिकारी विचारकों के दुश्मनों ने, अलग राज्य के विरोधी शक्तियों ने 20 फरवरी 1985 को उनकी इहलीला समाप्त कर दी। चुटिया क्षेत्र के लोगों ने विष्णु महतो को इस बात के लिए सतर्क भी किया था लेकिन वह कहा करते थे कि मुझे किसी से व्यक्तिगत कोई दुश्मनी नहीं है मेरा कौन क्या कर सकता है। वे हंसकर लोगों के बीच अपनी बातों को साझा करते थे।
बिशुन महतो की छाप को मिटाया नहीं जा सका। उनके विचार आज भी झारखंड के कण – कण व जन-जन में जीवित है। समाज की बड़ी ताकतों ने सामाजिक सोच के प्रबुद्ध जनों ने बिशुन महतो के नाम से एक विद्यालय का निर्माण किया एवं विशालकाय स्वर्णिम प्रतिमा स्थापित की। आज यह प्रतिमा एक बदलाव लाने के लिए समाज के प्रबुद्ध युवाओं , लोगों व महिलाओं को प्रेरित करता है। लोगों को लोगों से जोड़ता है। बिशुन महतो के विचारों को प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर को आत्मसात करते हैं। उन्हें नमन करते हुए चंदन एवं वंदन करते हैं। गीत उलगुलान के गाते हैं। उन की आन, बान व शान की कथा को दुहराते हैं।
उपर दिये गए वक्तव्य लेखक के अपने हैं