विचार
जब किसी छोटे जगह में कोई बड़ी फैक्ट्री आती है तो इसका सबसे ज्यादा स्वागत स्थानीय लोग करते हैं.
वो अक्सर इसे आशा भी निगाहों से देखते हैं कि शायद इस फैक्ट्री से शायद सबको फायदा मिले। लेकिन अक्सर बड़ी फैक्ट्रियां स्थानीय लोगों के लिए नुकसान का ही सौदा होती हैं. बड़ी फैक्ट्रियों से होने वाले नुकसान बहुत हैं.
अगर इसे होने वाले नुकसान की बात करें तो बहुतायत हैं. हमारे पर्यावरण को नुकसान है. स्थानीय अपने पुरखों की उपजाऊ जमीन देते हैं. स्थानीय लोगों को इन कारखानों से होने वाले प्रदुषण को झेलना पड़ता है, चाहे वो वायु प्रदुषण हो, जल प्रदुषण हो, जंगलों को होने वाली क्षति हो या फिर हमारे सड़कों को हो रहा नुकसान हो. हम झारखंडी सब कुछ झेलते हैं. लेकिन हमें इसका कोई फायदा नहीं मिलता।
6 साल पहले जब अडानी पावर ने गोड्डा में 1600 मेगावाट के पावर प्लांट की घोषणा की तो गोड्डा में लोगों की उम्मीदें जगी कि शायद औद्योगीकरण के गोड्डा का उद्धार होगा। हमारे लोगों को रोजगार मिलेगा। हमारे छोटे व्यापारियों के लिए व्यवसाय के लिए नए रास्ते खुलेंगे और गोड्डा भी प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेगा। इसलिए 6 साल तक गोड्डा के लोगों ने अडानी प्लांट को सफल बनाने के लिए हर तरह की कठिनाइयों को झेलते हुए अपना पूर्ण समर्थन दिया। अब जब पावर प्लांट शुरू होने वाला है तो लोगों की उम्मीदें भी जाएगी हुई हैं. वो भी अपनी हिस्सेदारी का इंतज़ार कर रहे हैं. गोड्डा जिले से जनप्रतिनिधि होने के नाते ये जरुरी है कि मैं उनकी आकांक्षाओं का ध्यान रखूं। उनकी आवाज़ बनूँ। उन्हें उनका हक़ दिलवाऊं।
ना मैं औद्योगीकरण के खिलाफ हूँ, न ही गोड्डा की जनता इनके खिलाफ है. अडानी पॉवर प्लांट को देश का सबसे बड़ा और सुनियोजित पावर प्लांट बनाने के लिए हम सब मिल कर काम करेंगे, और गोड्डा को विश्व मानचित्र पर लाएंगे। लेकिन इसके लिए जरुरी है कि इसमें स्थानीय भागीदारी हो. इतना बड़ा प्लांट बिना लोगों के नहीं चलेगा। इसको चलने के लिए हज़ारों लोगों की जरूरत होगी। गोड्डा की युवा चाहती है कि इन नौकरियों में उनकी भागीदारी हो. इसलिए जरुरी है अडानी प्लांट में काम करने वाले कम से कम तीन-चौथाई (75%) लोग गोड्डा जिले से हों. इसे दोनों को फायदा है, अडानी कंपनी को कम खर्च में स्थानीय प्रतिभाशाली युवा मिलेंगे जो इस प्रोजेक्ट की सफलता के लिए पूरी लगन करेंगे।
एक इतने बड़े प्रोजेक्ट को चलाने के लिए सैकड़ों कॉन्ट्रैक्ट्स, ठेकेदारों की जरुरत पड़ेगी जो नॉन-कोर काम कर सकें जैसे की कोयले ढोने का काम, यातायात मुहैया कराने का काम, सिविल वर्क्स, स्टेशनरी सप्लाई, सफाई, कैंटीन चलन, बिजली सम्बंधित काम इत्यादि। इन सब कामों के लिए सैकड़ों कॉन्ट्रैक्टर्स काम करेंगे, जो 10 -20 लोगों को अपने यहाँ रोजगार देंगे। उनके स्थानीय होने का भी सीधा फायदा कंपनी को मिलेगा। उनका खर्च भी घटेगा और अच्छी गुणवत्ता का काम भी मिलेगा।
जब यहाँ 1600 मेगावाट बिजली उत्पन हो रही है तो ये कहना उचित होगा कि इसका एक छोटा सा हिस्सा, महज 10 %, 160 मेगावाट विशेष कर गोड्डा को दिया जाये ताकि गोड्डा के लोगों को अंधकार में नहीं रहना पड़े.
गोड्डा की जनता कुछ ऐसा नहीं मांग रही जो आसानी से नहीं किया जा सकता या जिससे कंपनी का कोई घाटा हो. वो ऐसे भी किसी न किसी को रोजगार देंगे ही तो क्यों नहीं स्थानीय लोगों को दें ताकि इससे कंपनी का भी फायदा हो और लोगों का भी फायदा हो. यहाँ के लोग बहार जाकर काम करते हैं और बहार के लोग यहाँ आके काम करेंगे, ये एक अजीब व्यवस्था होगी। सही, सुचारु व्यवस्था वो होगी जिसमें जिसने कष्ट झेला है, नौकरी में उनको प्राथमिकता मिले।
इसके लिए जरुरी है कि स्थानीय युवाओं का डेटाबेस बने. हमारे युवा किस किस काम में समर्थ हैं, किन नौकरियों में उनको रखा जा सकता है उसका एक खाका बने. अगर अडानी प्लांट अपने अगले 3 साल में आने वाली नौकरी का ब्यौरा दें तो जो क्वालिफिकेशन स्थानीय लोगों में मौजूद नहीं है, लोगों को वैसी ट्रेनिंग सकती है. ताकि उपयुक्त लोगों सही नौकरी मिल सके और कंपनी को चलाने के लिए सही मैनपावर।
जब गोड्डा की जनता ने इतना कुछ झेला है तो इस भागीदारी में सबको फायदा है. गोड्डा में अभी एक बहुत बड़े परीक्षा की घडी चल रही है. और उम्मीद है कि अडानी पावर और गोड्डा की साझेदारी से औद्योगीकरण का एक नया मॉडल तैयार होगा जिसमें बड़े व्यापारी अपना धन, अपनी फैक्ट्री लगाएंगे और लोकल जनता उसमें खुल कर भागीदारी लेगी, फैक्ट्री को चलाएगी। इस मॉडल में फैक्ट्री को भी फायदा होगा, स्थानीय लोगों को भी फायदा मिलेगा और सरकार भी ऐसे मॉडल में अपना पूरा विश्वास दिखाने में समर्थ होगी।
दीपिका पाण्डेय सिंह की कलम से
( लेखिका झारखंड विधानसभा की सदस्य हैं)