”मेजर ध्यानचंद सिंह (Major Dhyanchand) जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन”
मेजर साहब (Major Dhyanchand ) अकेले भारतीय थे जिन्होंने आजादी से पहले भारत में ही नहीं जर्मनी में भी भारतीय झंडे को फहराया.
उस समय हम अंग्रेजो के गुलाम हुआ करते थे भारतीय ध्वज पर प्रतिबंध था. इसलिए उन्होंने ध्वज को अपनी नाईट ड्रेस में छुपाया और उसे जर्मनी ले गए. इस पर अंग्रेजी शासन के अनुसार उन्हें कारावास हो सकती थी लेकिन हिटलर ने ऐसा नहीं किया.
जीवन के अंतिम समय में उनके पास (Major Dhyanchand ) खाने के लिए पैसे नहीं थे. इसी दौरान जर्मनी और अमेरिका ने उन्हें (Major Dhyanchand ) कोच का पद ऑफर किया लेकिन उन्होंने (Major Dhyanchand ) यह कहकर नकार दिया की “अगर में उन्हें (Major Dhyanchand ) हॉकी खेलना सिखाता हूँ तो भारत और अधिक समय तक विश्व चैंपियन नहीं रहेगा.
” लेकिन भारत की सरकार ने उन्हें (Major Dhyanchand ) किसी प्रकार की मदद नहीं की तदुपरांत भारतीय आर्मी ने उनकी (Major Dhyanchand ) मदद की.एक बार ध्यानचंद (Major Dhyanchand ) अहमदाबाद में एक हॉकी मैच देखने गए.
लेकिन उन्हें (Major Dhyanchand ) स्टेडियम में प्रवेश नहीं दिया गया स्टेडियम संचालको ने उन्हें (Major Dhyanchand ) पहचान ने से इनकार कर दिया . इसी मैच में जवाहरलाल नेहरु ने भी भाग लिया था.
ध्यानचंद जी (Dhyanchand ) की प्रशंसको की लिस्ट में हिटलर का नाम सबसे उपर आता है. हिटलर ने ध्यानचंद जी (Major Dhyanchand ) को जर्मनी की नागरिकता लेने के लिए प्रार्थना की,साथ ही जर्मनी की ओर से खेलने के लिए आमंत्रित किया उसके बदले उन्हें (Major Dhyanchand ) सेना का अध्यक्ष और बहुत सारा पैसा देने की बात कही.
लेकिन जवाब में ध्यानचंद (Major Dhyanchand ) ने उन्हें (Major Dhyanchand ) कहा की मैं पैसो के लिए नहीं देश के लिए खेलता हूँ.
क्रिकेट के आदर्श सर डॉन ब्रेड मैन ने कहा “में ध्यानचंद का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ मेरे रन बनाने से भी आसानी से वे गोल करते है,”
लगभग 50 से भी अधिक देशो द्वारा उन्हें 400 से अधिक अवार्ड प्राप्त हुए.
नतमस्तक है हम ऐसे महान (Major Dhyanchand ) देशभक्त खिलाड़ी के आगे….!
डॉ प्रभाकर कुमार की कलम से