हमने आजादी का अमृत महोत्सव पूरे वर्ष मनाया और 76वां स्वतंत्रता दिवस आज हर्षोल्लास से मना रहे हैं।
76 वर्षों की यात्रा कम नहीं होती और भारत की यात्रा में भी कहने, दिखाने और लिखने को बहुत कुछ है, बस राष्ट्र ध्वनि सुनने के लिए वो कान, बदली हुई राष्ट्र छवि को देखनेवाली दृष्टि और राष्ट्र गाथा लिखने वाली उस कलम के मालिक होने की आवश्यकता है। बदलते परिदृश्य की बात आज की नहीं, पूरे 76 वर्षों की है।
कम से कम तीन पीढ़ियों को संजोने वाले इस राष्ट्र यात्रा ने हर क्षेत्र में उतार चढाव देखे और कई तरह की बाधाओं को दूर करके आज भारत का समाज, भारत की शिक्षा और संस्कृति, भारत का जीडीपी, भारत की राजनीति, भारत के गांव और शहर आदि सभी क्षेत्र आज की स्थिति तक पहुंचे है।
यह आलेख शिक्षा के बदलाव और विकास यात्रा को समर्पित है। ऐसे तो हर क्षेत्र की विकास यात्रा इतनी व्यापक है कि उसे एक आलेख में लिखना लगभग असंभव है। किंतु शिक्षा में कई बदलाव ऐसे हैं, जिन्हें आमतौर पर मील का पत्थर माना जा सकता है। इस बदलाव को उन विद्वानों के साथ देखना नया और रोचक अनुभव होगा, जिन्होंने भारतीयता की जड़ों के साथ आधुनिकता का अद्भुत संगम बनाकर भारतीय शिक्षा को नई दिशा और वर्तमान दशा प्रदान की है।
औपचारिक अंग्रेजी शिक्षा की अलख जगाने का श्रेय जहां ब्रिटिश काल को दिया जा सकता है, वहीं गुरु और उस्ताद की यात्रा तो भारत ने स्वयं तय किया और कहने की बात नहीं की विश्वगुरु का तमगा दिलानेवाले भारत के नालंदा, तक्षशिला, बल्लभी और काशी जैसा एक भी वैश्विक शिक्षा केंद्र यह ब्रिटिश शिक्षा पद्धति नहीं दे पाई है। ऐसे विद्वानों की कमीं इस धरती को कभी नहीं रही। कुछ विद्वानों को ‘संगम सिपाही’ के रूप में देखा जा सकता है।
स्वतंत्र भारत के ऐसे शिक्षाविदों में महत्वपूर्ण नाम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का हैं। भारतीय दर्शन का ब्रिटिश शिक्षा के साथ अनोखा मेल उनकी शैक्षिक योजनाओं में अनायास ही दिख जाते हैं।
जब वो प्रेयर को विद्यालय की गतिविधियों का आवश्यक हिस्सा बताते हैं और धर्मनिरपेक्ष रहते हुए भी धर्म की अच्छाइयों को शिक्षा में आत्मसात करने की बात कहते हैं तो ब्रिटिश शिक्षा को भारतीय दर्शन के आवरण में प्रदान करने की शुरुआत हो जाती है। अमेरिकी शिक्षक पॉल आर्ट्यू शिलिप का एक कथन उल्लेखनीय है कि राधाकृष्णन ‘पूर्व और पश्चिम के बीच एक जीवित सेतु’ हैं।
स्वतंत्रता के बाद की शिक्षा पर उनकी पहली दृष्टि ने उच्च शिक्षा को 1948–49 के विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की अध्यक्षता के द्वारा नई दिशा और गति दी थी। फिर आपने प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन भी किया। शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के कारण ही 5 सितंबर का डॉ. राधाकृष्णन का जन्मदिन पूरे राष्ट्र के लिए शिक्षक दिवस बन गया।
स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कभी औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी अर्थात वो उस समय के शानो शौकत वाली ब्रिटिश शिक्षा से परे उन्होंने अपने घर और पारंपरिक ट्यूशन वाले तरीकों से शिक्षा ग्रहण की। इसके बावजूद उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के सर्वभौमिकरण के लिए भारत में वो कदम उठाए जो वैश्विक शिक्षा के केंद्र में था और आधुनिक भारतीय शिक्षा भी इसे अपने वृहद लक्ष्य में शामिल करती है।
उनमें पारंपरिकता और आधुनिकता का दुर्लभ संगम देखने को मिला। एक तरफ महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा का लक्ष्य तो दूसरी ओर प्रगतिशील भारत के लिए योजना आयोग के साथ मिलकर आधुनिक शिक्षा के प्रबंधन का स्वप्न। 11 नवम्बर को उनके जन्मदिवस पर प्रतिवर्ष राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता हैं।
स्वतंत्रता उपरांत शिक्षा की चर्चा डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के बिना अधूरा है, उन्हें “भारत के मिसाइल मैन” के रूप में याद किया जाता है। डॉ. कलाम ने एक सफल वैज्ञानिक के रूप में जो आधार रखे थे, उस पर भारत अंतरिक्ष से लेकर रक्षा के क्षेत्र में आज अपने शिखर को छू रहा है। शैक्षिक और तकनीकी क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के जनक जीवन में भी बदलाव लाते हुए भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। वो एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जो एक ओर भारत की पारंपरिक किंतु बहुमूल्य प्रथाओं पर भी गर्व करते थे और दूसरी ओर आधुनिक शैक्षिक विचारों के साथ उनके एकीकरण के लिए भी प्रयासरत रहे।
ऐसे हीं आज के अद्भुत ‘संगम सिपाही’ हैं – डॉ. के. कस्तूरीरंगन। इसरो में 9 वर्ष तक अध्यक्ष पद पर रहते हुए तकनीक का लोहा मनवानेवाले डॉ. कस्तूरीरंगन ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के ड्राफ्ट कमिटी की अध्यक्षता करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। वो परंपरा जो अभी भी गांव के लोगों में आसान समझ उत्पन्न करती थी किंतु औपचारिक शिक्षा में जिसका स्थान नही था। डॉ. कस्तूरीरंगन के साथ सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने परंपरा के साथ आधुनिक तकनीक, वैश्विक शोध के साथ जुड़कर स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग और वैश्विक विकास के साथ वैश्विक पर्यावरण के रक्षा के संकल्प के संगम का स्वप्न देखा है। ।
ऐसे ही कई शैक्षिक विद्वान हैं जो भारतीय शिक्षा को आज दिशा दे रहें हैं और प्रत्येक भारतीय विद्यार्थी को एक हाथ में पुस्तक के साथ दूसरे हाथ में कंप्यूटर से सुसज्जित करना चाहते हैं। ऐसे सभी अद्भुत शिक्षा के ‘संगम सिपाहियों’ को आजादी के 76 वर्ष के शुभ अवसर पर हार्दिक नमन!
लेखक:
डॉ सुशील कुमार तिवारी
जमशेदपुर महिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर शिक्षा संकाय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।